Saturday 3 January 2015

पत्थरों के शहर में


 
पत्थरों के शहर में
 

पत्थरों के शहर में
 
हम बीज कैसे बो रहे हैं
 
बंज़र एक शहर में
 
सुंदर बाग़ के सपने
 
क्यों संजो रहे हैं
 
जिस देश में
 
गंगा हो मैली
 
वहां पाप कैसे
 
धो रहे हैं
 
आधुनिकता के
 
इस भयावह दौर में
 
संस्कारों की बातें
 
क्यों कर रहे हैं
 
आइना दिखलाता है सच
 
फिर छुपने की
 
कोशिश क्यों कर रहे हैं
 
उत्पीड़न के इस दौर में
 
सबंधों की
 
दुहाई क्यों दे रहे हैं
 
चाटुकारिता में
 
उलझे कुछ
 
स्वाभिमान की बातें
 
क्यों कर रहे हैं
 
पुष्प वाटिका
 
हुई बंज़र सी


हम खुशबू की चर्चा
 
क्यों कर रहे हैं
 
सामाजिक रिश्ते
 
ज़र्ज़र होते
 
सुसमाज की कल्पना
 
क्यों कर रहे हैं
 
इतिहास को रचने वाले
 
अभिनन्दन को क्यों
 
तरस रहे हैं
 
आदर्शों को रचने वाले
 
आलोचना के पात्र
 
क्यों हो रहे हैं
 
पत्थरों के शहर में
 
हम बीज कैसे बो रहे हैं


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