पत्थरों
के
शहर
में
पत्थरों
के
शहर
में
हम
बीज
कैसे
बो
रहे
हैं
बंज़र
एक
शहर
में
सुंदर
बाग़
के
सपने
क्यों
संजो
रहे
हैं
जिस
देश
में
गंगा
हो
मैली
वहां
पाप
कैसे
धो
रहे
हैं
आधुनिकता
के
इस
भयावह
दौर
में
संस्कारों
की
बातें
क्यों
कर
रहे
हैं
आइना
दिखलाता
है
सच
फिर
छुपने
की
कोशिश
क्यों
कर
रहे
हैं
उत्पीड़न
के
इस
दौर
में
सबंधों
की
दुहाई
क्यों
दे
रहे
हैं
चाटुकारिता
में
उलझे
कुछ
स्वाभिमान
की
बातें
क्यों
कर
रहे
हैं
पुष्प
वाटिका
हुई
बंज़र
सी
हम
खुशबू
की
चर्चा
क्यों
कर
रहे
हैं
सामाजिक
रिश्ते
ज़र्ज़र
होते
सुसमाज
की
कल्पना
क्यों
कर
रहे
हैं
इतिहास
को
रचने
वाले
अभिनन्दन
को
क्यों
तरस
रहे
हैं
आदर्शों
को
रचने
वाले
आलोचना
के
पात्र
क्यों
हो
रहे
हैं
पत्थरों
के
शहर
में
हम
बीज
कैसे
बो
रहे
हैं
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