बिछा
के
कांटे
वो
,
किस्मत
में
मेरी
खुद
की
किस्मत
पर,
इतरा
रहे
हैं
हम
आज
भी
उनकी
राहों
में
,
पलकें
बिछाये
बैठे
हैं
वो
किसी
और
की
,सेज
सजा
रहे
हैं
मुहब्बत
उन्हें
रास
न
आई
मेरी
वो
किसी
और
की
बाहों
में
रातें
बिता
रहे
हैं
माना
हमारी
मुहब्बत
रास
न
आई
उनको
किसी
और
से
भी
तो
वो
मुहब्बत
ही
तो
जता
रहे
हैं
किनारा
कर
के
वो
हमसे
खुद
हमारी
यादों
के
और
करीब
आ
रहे
हैं
हमसे
दूर
जाने
की
आरज़ू
थी
उनकी
इसी
बहाने
वो
मेरे
और
करीब
आ
रहे
हैं
उन्हें
हमसे
मुहब्बत
नहीं
ये
क़ुबूल
नहीं
है
हमको
वे
अपने
दिल
से
एक
बार
पूछ
कर
देखें
क्यों
वे
खुद
से
बेवफाई
किये
जा
रहे
हैं
फूल
बिछाए
थे
प्यार
के
उनकी
राहों
में
वो
किस
गुनाह
की
हमें
सजा
दिए
जा
रहे
हैं
मुद्दत
हुई
उनके
दीदार
किये
क्यों
वो
खुद
को
सज़ा
दिए
जा
रहे
हैं
तेरे
दामन
से
लिपट
रोने
को
करे
दिल
मेरा
किसी
और
की
रातें
आप
सजा
रहे
हैं
चाहकर
भी
मैं
तुझे
भूल
नहीं
पाऊंगा
एक
आप
हो
कि
किसी
और
को
याद
किये
जा
रहे
हैं
दिल
ने
मेरे
तुझे
,
मुहब्बत
का
खुदा
माना
फिर
क्यों
आप
,
हम
पर
जुल्म
किये
जा
रहे
हैं
मखमली
हुस्न
से
तराशा
खुदा
ने
तुझको
हम
मुहब्बत
के
परवानों
को
आप
क्यों
रुला
रहे
हैं
हमें
खुद
से
भी
ज्यादा
,
यकीन
था
तुझ
पर
मुहब्बत
में
फिर
हम
धोखा
क्यों
खा
रहे
हैं
आरज़ू
है
रुखसत
होने
से
पहले
एक
बार
मिलें
तुझसे
इसी
आरज़ू
में
हम
जिए
जा
रहे
हैं
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