Saturday, 3 January 2015

बंद राहों पर


 
बंद राहों पर
 

बंद राहों पर मंजिल का दीदार नहीं होता
 
बुझते हैं वो चिराग , जिनमे जलने का ज़ज्बा नहीं होता

 

पाक दामन नसीब हो सबको
 
खुदा की राह नसीब हो सबको
 
मुरीद हों तेरे करम से सब
 
हर एक शै में तेरा दीदार हो सबको


 

खिलाये हैं कुछ फूल तूने इस चमन में
 
बिछाए हैं कुछ नूर तूने इस चमन में
 
हर एक शख्स तेरे करम को तरसे
 
महका , तेरे करम की खुशबू इस चमन में


 

रुला कर हमको ,वो मुस्कुरा रहे हैं हम पर
 
बिछा के शूल ,इतरा रहे हैं वो खुद पर
 
मैं एहसानमंद हूँ कि वो मेरे किसी काम आये
 
दोस्त हो सके , बेहतर दुश्मन की तरह


 

कौन कहता है पंखों से उड़ान होती है
 
कौन कहता है बंज़र ज़मीन वीरान होती है

 पंखों को छोड़ हौसलों पर एतबार रखो
 
हौसलों से बंज़र ज़मीन भी ज़वान होती है


 

दया धर्म का मूल होता , , धर्म राह पर जाता कौन
 
कर्म विजय का मूल होता , मंजिल पर पाँव जमाता

  कौन
 
पालने के बालक से पूछो , उसकी मुस्कान जगाता कौन
 
राहे इबादत , जीवन का सत्य होता , मोक्ष राह पर

  जाता कौन


 

वफ़ा के बदले , वफ़ा की आरज़ू करो
 
दुआ के बदले , दुआ की उम्मीद करो
 
जिन्दगी है चार दिनों का मेला
 
बेगैरतों से इंसानियत की आरज़ू करो

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