Monday, 5 January 2015

कुदरत के हैं खेल भी न्यारे


 
कुदरत के हैं खेल भी न्यारे

 

कुदरत के हैं खेल भी न्यारे
 
दिखते हैं हमको सांझ सकारे
 
कहीं सुबह की भीनी खुशबू
 
कभी सांझ के तारे प्यारे

 

कुदरत के हैं खेल भी न्यारे

कहीं माँ की सुनते लोरियां

कहीं सीमा पर खाते गोलियाँ

कदमकदम जीवन है ढलता


 
पल दर पल मृत्यु को वरता

कुदरत के हैं खेल भी न्यारे

थरथर धरती हमें डराए
 
हमको है कुछकुछ समझाए

 
स्वीकार करें कुदरत की महिमा
 
इसे हमें मिल पावन रखना

कुदरत के हैं खेल भी न्यारे

आई सुनामी बड़ी भयन

 
छीने उसने लाखों के घर
 
फिर भी मानव समझ पाया
 
ये है सब कुदरत की माया

कुदरत के हैं खेल भी न्यारे

 

चीर हरण हैं शर्मिन्दा करते
 
लड़कियों की भावनाओं से खेलते
 
काम प्रभाव में लीं हुए सब
 
तन पर चढ़ती तन की माया , ये सब है कुदरत की माया

 

कुदरत के हैं खेल भी न्यारे

आओ हम मिल कुछ हैं सोचें
 
कुदरत के नियमों संग डोलें
 
इसकी माया को हम समझें

 
इसके खेल निराले समझें

कुदरत के हैं खेल भी न्यारे


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