कुदरत
के
हैं
खेल
भी
न्यारे
कुदरत
के
हैं
खेल
भी
न्यारे
दिखते
हैं
हमको
सांझ
सकारे
कहीं
सुबह
की
भीनी
खुशबू
कभी
सांझ
के
तारे
प्यारे
कुदरत
के
हैं
खेल
भी
न्यारे
कहीं
माँ
की
सुनते
लोरियां
कहीं
सीमा
पर
खाते
गोलियाँ
कदम
– कदम
जीवन
है
ढलता
पल
दर
पल
मृत्यु
को
वरता
कुदरत
के
हैं
खेल
भी
न्यारे
थर
– थर
धरती
हमें
डराए
हमको
है
कुछ
– कुछ
समझाए
स्वीकार
करें
कुदरत
की
महिमा
इसे
हमें
मिल
पावन
रखना
कुदरत
के
हैं
खेल
भी
न्यारे
आई
सुनामी
बड़ी
भयनकर
छीने
उसने
लाखों
के
घर
फिर
भी
मानव
समझ
न
पाया
ये
है
सब
कुदरत
की
माया
कुदरत
के
हैं
खेल
भी
न्यारे
चीर
हरण
हैं
शर्मिन्दा
करते
लड़कियों
की
भावनाओं
से
खेलते
काम
प्रभाव
में
लीं
हुए
सब
तन
पर
चढ़ती
तन
की
माया
,
ये
सब
है
कुदरत
की
माया
कुदरत
के
हैं
खेल
भी
न्यारे
आओ
हम
मिल
कुछ
हैं
सोचें
कुदरत
के
नियमों
संग
डोलें
इसकी
माया
को
हम
समझें
इसके
खेल
निराले
समझें
कुदरत
के
हैं
खेल
भी
न्यारे
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