Monday, 5 January 2015

प्रतिबिम्ब स्वयं का देख


 
प्रतिबिम्ब स्वयं का देख
 


प्रतिबिम्ब स्वयं का देख
 
मनु मन में क्या सोच रहा
 
क्या मैं मानव हित जन्मा हूँ
 
या मैं स्वयं को खोज रहा

 

पलने का बालक था जब मैं

 
पाप मार्ग से दूर रहा
 
पाया प्यार सभी का मैंने
 
मुझ पर सबका दुलार रहा

 

जैसेजैसे बड़ा हुआ मैं
 
मुझ पर गुरुजन का हाथ रहा
 
हुआ युवा मैं बदले मेरे दिन
 
मुझ पर भी दुनिया का प्रभाव पड़ा

 

कभी जवां हुई दिल की धड़कन
 
कभी किसी से मुझको प्यार हुआ
 
प्रतिबिम्ब स्वयं का देख
 
मनु मन में क्या सोच रहा

 

अब आया परिणय का बंधन
 
भाया मुझे प्रिया से आलिंगन
 
बच्चों की किलकारी से गूंजा
 
मेरा और प्रिया का तन मन

 

दिन बीते और आया बुढ़ापा

लगता मुझको कुछ न्यारा सा
 
आशीर्वाद सभी को बांटो
 
स्वयं में तुम कभी झांको

 

जीवन का सच बस इतना ही है क्या
 
या कुछ और हमें है पाना
 
बस जीवन को जीना है जीवन
 
या फिर मोक्ष मार बढ़ जाना

 

प्रतिबिम्ब स्वयं का देख
 
मनु मन में क्या सोच रहा
 
क्या मैं मानव हित जन्मा हूँ
 
या मैं स्वयं को खोज रहा


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