प्रतिबिम्ब
स्वयं
का
देख
प्रतिबिम्ब
स्वयं
का
देख
मनु
मन
में
क्या
सोच
रहा
क्या
मैं
मानव
हित
जन्मा
हूँ
या
मैं
स्वयं
को
खोज
रहा
पलने
का
बालक
था
जब
मैं
पाप
मार्ग
से
दूर
रहा
पाया
प्यार
सभी
का
मैंने
मुझ
पर
सबका
दुलार
रहा
जैसे
– जैसे
बड़ा
हुआ
मैं
मुझ
पर
गुरुजन
का
हाथ
रहा
हुआ
युवा
मैं
बदले
मेरे
दिन
मुझ
पर
भी
दुनिया
का
प्रभाव
पड़ा
कभी
जवां
हुई
दिल
की
धड़कन
कभी
किसी
से
मुझको
प्यार
हुआ
प्रतिबिम्ब
स्वयं
का
देख
मनु
मन
में
क्या
सोच
रहा
अब
आया
परिणय
का
बंधन
भाया
मुझे
प्रिया
से
आलिंगन
बच्चों
की
किलकारी
से
गूंजा
मेरा
और
प्रिया
का
तन
मन
दिन
बीते
और
आया
बुढ़ापा
लगता
मुझको
कुछ
न्यारा
सा
आशीर्वाद
सभी
को
बांटो
स्वयं
में
तुम
कभी
न
झांको
जीवन
का
सच
बस
इतना
ही
है
क्या
या
कुछ
और
हमें
है
पाना
बस
जीवन
को
जीना
है
जीवन
या
फिर
मोक्ष
मार
बढ़
जाना
प्रतिबिम्ब
स्वयं
का
देख
मनु
मन
में
क्या
सोच
रहा
क्या
मैं
मानव
हित
जन्मा
हूँ
या
मैं
स्वयं
को
खोज
रहा
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