Saturday 17 January 2015

हमारी सादगी उन्हें रास न आई

हमारी सादगी उन्हें रास न आई
हमारा प्यार उन्हें रास न आया
बीत जो बात गयी क्या कहें
उन्हें हमारा इंतज़ार रास न आया

उन्हें हमसे शिकायत न रहे , हमें उनसे शिकायत न रहे
चलो दिल से दिल मिलायें कोई गुंजाइश न रहे

उनका हसरते दीदार ख्वाहिश है मेरी
उनकी बाहों में बीते रात , ये चाहत है मेरी
यूं तो आते हैं रोज , ख़्वाबों में मेरे
मिल बैठ जानें एक दूजे का हाल , ये तमन्ना है मेरी

तकलीफ हुई दिल के टूटने पर मुझको
आंखें नाम हुईं उनके रूठने पर मुझको
नफरत भरी निगाहों से नहीं देखा मैंने कभी उनको
उनकी बेवफाई पर दिल पर चोट लगी मुझको

चाहतों के समंदर से हम अनजान हैं क्यों
प्यार के एहसास से हम अनजान हैं क्यों
अजनबियों सी जिन्दगी जे रहे हैं हम

मकसदे इंसानियत ये हम अनजान हैं क्यों 

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