Wednesday, 28 August 2024

युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझको

 युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझको

सो रही अन्तरात्मा की आवाज जगा दो मुझको

बिखर न जाएँ जिन्दगी में ख़ुशी के पल
आशा की नई किरणों से सजा दो मुझको

आंसुओं भरी रातों में , बिखरें न जिन्दगी के हंसी पल
एक मुटठी चांदनी हो , मेरी जिन्दगी का सबब

न जाने अश्क से आँखों में क्यों हैं आये हुए
इन आंसुओं के समंदर से बाहर निकाल लो मुझको

मेरे सपनों की शाम , न हो जाए कहीं
हो सके तो प्यार की सरिता में बहा दो मुझको

तिनके – तिनके से सजाया है आशियाना मैंने
हो सके तो इस आशियाने में सजा दो मुझको

एक ख़त लिखा था मैंने तुझको ए मेरे सनम
कुछ फूल इन खतों के जवाब में भेज दो मुझको

आकाश से भी ऊँची थी मेरे सपनों की उड़ान
दुआ करो सपनों को मेरे , और आसमान नसीब हो मुझको

युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझको
सो रही अन्तरात्मा की आवाज़ जगा दो मुझको

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

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