खिलेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल
बिछेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल
कौन कहता है सुबह होगी नहीं
हौसलों को तू अपने
आसमां की उड़ान पर लेकर चल
रुकना नहीं है तुझको बीच राह में
मंजिल को अपने जिगर में बसा के चल
खुशबू से महकेगा आँचल
किसी को अपना बना के चल
किस्से जहां में यूं ही एहसास नहीं देते
किसी की राह के कांटे चुरा के चल
बेफिक्री में तू यूं ना जी
किसी के गम अपने जिगर में बसा के चल
तेरा नसीब बुलंदी पाए
दो फूल इंसानियत के खिला के चल
मुझे लोग खुदा का नूर कहें
दो वक़्त की नमाज़ अता कर के चल
खिलेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल
बिछेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
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