फूल अब खिलते नहीं , खुशबू का हमको पता नहीं
भागते फिर रहे हैं हम , मंजिल का हमको पता नहीं
ज्ञान के पीछे भागते हम , पुस्तकें हमको भाती नहीं
मोक्ष की बातें करते हम , संस्कारों से हमारा नाता नहीं
गिर रहे हैं बार – बार हम , संभलना हमको आता नहीं
देख रहे सा सभी चीरहरण , इंसानियत से हमारा नाता नहीं
पाने की इच्छा प्रबल हुई , हमको देना आता नहीं
पालना झुला रहे हैं सब , मातृत्व से हमारा नाता नहीं
काम प्रबल हुई भावनाएं , प्रभु से हमारा नाता नहीं
आधुनिकता की गुलामी में डूबे , संस्कारों से हमारा नाता नहीं
चांदनी की चमक में डूबे , अन्धकार हमको भाता नहीं
विलासिता की चाहत में डूबे , संस्कारों से हमारा नाता नहीं
मधुशाला का रुख करें हम , देवालय से हमारा नाता नहीं
जीवन की उलझन में उलझे , मोक्ष से हमारा नाता नहीं
फूल अब खिलते नहीं , खुशबू का हमको पता नहीं
भागते फिर रहे हैं हम , मंजिल का हमको पता नहीं
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
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