न जाने कहाँ फिर से, उनसे मुलाकात हो जाये
न जाने कहाँ , फिर से
उनसे मुलाकात हो जाये
न कुछ कहें हम उनसे , न वो हमसे
बस एक दूसरे का , दीदार हो जाये
चंद खुशनुमा यादें ताज़ा हो जाएँ
वो आम के पेड़ की छैयां
बाहों में बाहें , एक दूसरे की
आगोश में एक दूसरे की हम – तुम
वो खतों का सिलसिला
वो छुप – छुप कर मिलना
वो तेरा मुस्कराना
चुनरी से मुँह छुपाना
काश वो यादें फिर से , ताज़ा हो जाएँ
तेरी आगोश में चंद सासें , गुजर जाएं
वो फिर से तेरा रूठना , और मेरा मनाना
काश फिर से हम , एक – दूसरे के हो जाएँ
न जाने कहाँ उनसे
फिर से उनसे मुलाकात हो जाये
न कुछ कहें हम उनसे , न वो हमसे
बस एक दूसरे का दीदार हो जाये
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
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