Tuesday 1 December 2015

यूं ही खामोश गुजर रही है - ग़ज़ल

यूं ही खामोश गुजर रही है मेरी हर एक शाम

यूं ही खामोश गुजर रही है .मेरी हर एक शाम
किसी की बाहों में गुजर हो जाए मेरी हर एक शाम तो अच्छा हो

चेहरे पर नूर नहीं . होठों पर मुस्कान नहीं
सुबह किसी की मुस्कराहट से, गुलजार हो जाए तो अच्छा हो

गुलशन , मेरी जिन्दगी के गुलजार नहीं हैं .फूलों की रौनक से
खिलें जो कुछ फूल मेरे गुलशन में भी तो अच्छा हो

जी रहे हैं सभी , खुशनुमा रातों के इंतज़ार में
मैं किसी की ग़मगीन रातों का हमसफ़र, हो जाऊं तो अच्छा हो

खुशियाँ कम और कॉटों भरी हो रही जिन्दगी सबकी
मैं किसी की कॉर्टो भरी राहों में फूल बनकर ,बिखर जाऊं तो अच्छा हो

जी रहे हैं सभी . पर चेहरों से मुस्कान है नदारद
मैं किसी के सुर्ख होठों की मुस्कान ,हो जाऊं तो अच्छा हो

क्यों किसी का दिल , बेजारों सी जिन्दगी का हो साथी
दूर होकर भी मैं किसी के दिल के करीब .हो जाऊं तो अच्छा हो

जी रहे हैं सब इस जहाँ में , एक वीराने आशिरयों में
खिलाकर कुछ फूल इस आशियाँ में , फिर रुखसत हो जाऊं तो अच्छा हो





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