शागिर्द समझकर ऐ मौला
शागिर्द समझकर ऐ मौला , तेरे दर मैं जगह देना मुझको
जागूं तो इबादत मेँ तेरी. सोरऊँ तो इबादत दे मुझको
जन्नत की मुझे परवाह नहीं . निगाह में अपनी रख मुझको
मेरा ठिकाना कोई नहीं. दर पर अपने रख मुझको
अकबर है तू तुझसा कोई नहीं, अपनी पनाह में रख मुझको
मैं अंजामे इबादत क्या जानू शागिर्द बना ले तू मुझको
रोशन हो सुबह और शाम मेरी. आदिल तू बना दे मुझको
आखिर मैं बन्दा हूँ तेरा. आगोश में अपनी ले मुझको
ज़मीर मेरा बोझिल न हो . जिल््लत से बचाना तू मुझको
मैं नक़्शे कदम पर चलूँ तेरे . ऐसी तदबीर सुझा मुझको
दामन में मेरे खुशियाँ बरसें , ऐसी तरकीब बता मुझको
तसब्वुर में ही सही. दीदार से अपने नवाज मुझकों
मैं यहाँ रहूँ या वहां रहूँ. पनाह में अपनी रख मुझको
नाउम्मीद न करना मेरे खुदा, काबित्र बना माला मुझको
निस््बत है तुझसे मुझको माला. अपने दर का चराग बना मुझको
पाकीजा शख्सियत हो मेरी. पासबान तेरा . तू कर मुझको
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