Tuesday, 1 December 2015

इस परेशां दिल को और परेशां न करो - ग़ज़ल

इस परेशां दिल को और परेशां न करो

इस परेशां दिल को , और परेशां न करो
इस गमे दिल को और गमसार न करो

मैं जानता हूँ मुझसे कोई खता नहीं हुई
इस खुदा के बन्दे को यूं परेशां न करों

उसे अज़ीज़ हूँ मैं, ये जानता हूँ मैं
उस खुदा की जानिब , मुझे परेशां न करो

मुझे गिला नहीं . दुनिया ने किनारा कर लिया मुझसे
इस खुदा के बन्दे को, और परेशां न करो

किस्मत ने मेरी हमेशा धोखा दिया मुझे
इस बेक़सूर को और परेशां न करो

मुझे ख्याल है उसके बन्दों की खिदमत मैं करें
इस खुदा के नूर को यूं , रुसवा न करो

मेरी नहीं कोई ख्वाहिश ऐ मेरे खुदा
तेरा दर हो मैरा ठिकाना, यूं गुमराह न करो

गुमसुम- गुमसुम सी जिन्दगी को कर लिया बसेरा मैंने
गुजारिश है इस गम्दीदा को यूं बेसहारा न करो

इस गुलशान में  गुल बन खिल सकूं,  है ये आरज़ू मेरी
खिलने से पहले ही मुझे शाख से , जुदा न करो

किसी के उजाड़ आशियाँ को रोशन करूँ ये आरज़ू मेरी
इस नाचीज़ की जिन्दगी को यूं जहन्नुम न करों






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