Sunday 13 December 2015

क्षणिकायें

घरेलू हिंसा पर कविता लिख
इतरा रहा है वो
रोज शाम अपनी बीवी से
मार खा रहा है वो



वह कवि ही क्या जो
अपनी बीवी से न डरे
सुबह हो या शाम
उसे दंडवत न करे



वह कवि ही क्या जो
अपनी बीवी की तारीफ़ में कविता न लिखे
वह कवि ही क्या जो
अपनी पड़ोसन को भाभीजी न कहे\

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