Tuesday, 1 December 2015

सपनों की महफ़िल सजायें

सपनों की महफ़िल सजायें

सपनों की महफिल सजायें . चल्लो कुछ नए गीत बनायें
तारों को धरती पर लायें . चलो चाँद पर होकर आयें

ढूंढकर उस खुदा का घर . चलो उससे मित्रकर आयें
वीरान हो रही जिंदगियों को. चल्नो दो पल ले लिए हँसा आयें

वक़्त की नाजुकता को समझें. चलो वक़्त से दोस्ती बढ़ायें
डूबती संस्कृति. संस्कारों की नाव को , चलो किनारे पर लायें

फूलों को डालियों का साथ मिले. चल्नों कुछ ऐसा कर आये
किसी की अंधेरी रातों मैं. चलो कुछ दीपक जला आयें

माँ की लोरियों को सुना, चलो बच्चों को सुल्रा आयें
माँ के आँचल तले. चलो कुछ पल गुजारकर आयें

बुरे वक्‍त के दौर से गुजर रही दुनिया, चल्लो उम्मीद का एक दीपक जलायें
बिखर रहे हैं सामाजिकता के मोती, चलो मित्रकर रहना सिखायें

बीतते वक़्त के साथ भर जाते हैं ज़ख्म, चलो ये एहसास जगायें
आधुनिकता के समंदर से बचना होगा, चलो युवा पीढ़ी को समझायें

किसी के सपनों को मिले पंखों का सहारा. चल्रो ऐसा कुछ कर आर्यें
खुदा की राह हों जिन्दगी का सबब. चल्रो इब्रादत को मकसद बनायें

सपनों की महफ़िल्र सजायें , चलो कुछ नए गीत बनायें
तारों को धरती पर लायें , चलो चाँद पर होकर आयें





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