लोगों के दिलों में
लोगों के दिलों मैं रहा नहीं खुदा के प्रति यकीन
गीत इबादत के लिखता रहा हूँ मैं
मुसीबतों के दौर जिन्दगी से हुए हैं कम नहीं
प्रतिकूल को अनुकूल बनाता रहा हूँ मैं
मुहब्बत के दुश्मनों की बात न करो
गीत मुहब्बत के गुनगुनाता रहा हूँ मैं
इश्क के परवानों की बात न पूछो
जवां दिलों में मुहब्बत जगाता रहा हूँ मैं
असभ्य चरित्रों से पटने लगी है ये दुनिया
गीता सदाचार के लिखता रहा हूँ मैं
परिचितों की भीड़ में हम खो गए कहीं
लोगों को एक - दूसरे से मिलाता रहा हूँ मैं
ध्वस्त हो गए सपने लोगों के दिलों के
नए - नए ख़्वाब सजाता रहा हूँ मैं
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