Sunday, 13 December 2015

बीमार दिल क्या बयाँ करे इजहारे - मुहब्बत

बीमार दिल क्या बयाँ करें इजहारे--मुहब्बत

बीमार दिल क्या बयाँ करें इजहारे--मुहब्बत
इश्क खुशनुमा और जवां दिल्लों की चाहत से हों रोशन

इश्क को अंजाम की परवाह नहीं , दुनिया का लिहाज़ नहीं
इश्क का अपना होता है खुदा, इसे दुनिया की परवाह नहीं

इश्क अजनबी को भी अजीज बना देता है
ये वो शै है जो इंसान को खुदा बना देता है

इश्क अफसाना नहीं जो पढ़ा और भूल गए
इश्क में डूबकर ही , अंजामे--इश्क का एहसास होता है

इश्क़ में तेरे अरमान, तेरी अमानत हो जायें
उस आसमानी खुदा के करम पर एतबार तो कर

इश्क में जो डूबे. फरिश्ता हो जाया करता है
देता है दिल को सुकून . ग़मों से पराया करता है

इश्क को मजहब की दीवारों में क्या कैद करे कोई
इश्क का मजहब. इश्क के ईमान से हो रोशन

डश्क से फिजां हो रोशन. इश्क से आशियाँ हो रोशन
इश्क से खुदा का दर रोशन. इश्क से सारी कायनात रोशन

बीमार दिल क्या बयों करें इजहारे. मुहब्बत
इश्क खुशनुमा और जवां दिलों की चाहत से हों रोशन





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