जन्नत की आर जू नहीं मुझको
जन्नत की आरजू नहीं मुझको
अपना गुलाम बना के रख
जूनून की हद तक ही सही
अपना शागिर्ट बना के रख
डबादत की जंजीरों में
जकड़कर रख मुझको ऐ मौला
ठिकाना मेरा, दर हो तेरा
इस नाचीज को अपना बना के रख
नादानी में भी मुझसे
हो न गुनाह कोई
निगेहबान हो तू मेरा
मुझको अपनी पनाह मेँ रख
मुहब्बत हो मुझको
सभी बन्दों से तेरे
आँखों का तेरी नूर हो सकूं मौला
रहम कर , अपनी नवाजिश मैं रख
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