Monday, 14 December 2015

जन्नत की आरज़ू नहीं मुझको

जन्नत की आर जू नहीं मुझको

जन्नत की आरजू नहीं मुझको
अपना गुलाम बना के रख
जूनून की हद तक ही सही
अपना शागिर्ट बना के रख

डबादत की जंजीरों में
जकड़कर रख मुझको ऐ मौला
ठिकाना मेरा, दर हो तेरा
इस नाचीज को अपना बना के रख

नादानी में भी मुझसे
हो न गुनाह कोई
निगेहबान हो तू मेरा
मुझको अपनी पनाह मेँ रख

मुहब्बत हो मुझको
सभी बन्दों से तेरे
आँखों का तेरी नूर हो सकूं मौला
रहम कर , अपनी नवाजिश मैं रख

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