Saturday, 27 December 2014

मैं तेरी चाहत को अपनी चाहत समझ बैठा


मैं तेरी चाहत को अपनी चाहत समझ बैठा


मैं तेरी चाहत को अपनी चाहत समझ बैठा
 
तू कसी और की जागीर थी , खबर नहीं मुझको
 
तेरे एहसास से रोशन है जिन्दगी मेरी
 
तू किसी और की अमानत थी , खबर नहीं मुझको
 


भरे शहर लुट रही अस्मत
 
ऐसे भी चरित्र बसर कर रहे , खबर नहीं मुझको
 

मुझे तेरी बेबसी का ख्याल था जानम
 
हमने बुलाया भी नहीं , आप आये भी नहीं
 

जिन्दगी सितारों की तरह बदलती है रंग अपना
 
कभी पास तो कभी दूर होने का गुमां देती है
 

खिलाओ फूल , कभी खुशबू फैलाकर देखो
 
किसी बदनसीब का नसीब बनाकर देखो


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