Friday, 12 December 2014

मन की दुनिया अजब निराली



मन की दुनिया अजब 

निराली




मन की दुनिया अजब निराली 
 
मन की भाषा एक पहेली


जाने कितनी परतें इसकी 
 
जाने कितने रहस्य समाये


मन के रेशों से बुना है 
 
जीवन का सारा वितान


मन के जीते , जीत है 
 
मन से सब होत महान


मन की भाषा मन ही जाने 
 
मन जीवन का सम्मोहन है


मन की चंचलता से उपजे 
 
एक कुंठित जीवन है


मन की बातें दिल क्यों सुनता 
 
क्यों तोते सा रट – रट करता


चल मन बूझें एक पहेली 
 
तू जीवन से या जीवन तुझसे


मन की उलझन , जीवन की उलझन 
 
संकल्प मार्ग सुलझाए उलझन


मन की भावना सर्वोपरि 
 
रचनाओं का करता सृजन


मन की लहरें , सागर सी 
 
ले जो सदा हिलोरें


सुन्दर मन , तन की सुन्दरता 
 
सभी के मन को भाये


जो मन रूठे , सब जग रूठे 
 
स्वर्ग भी नरक सा लागे


कोमल ह्रदय में , कोमल तन 
 
जिसमे ईश समाये


जो मन कोमलता त्यागे 
 
ह्रदय आघात लगाए


मन को प्रेम और भावुकता से 
 
बस में करना सीखो


मन तेरा हो फूल सरीखा 
 
खुशबू हो तेरी पहचान


जीवन के मर्म को समझो 
 
तेरा मन तेरी पहचान


मन की दुनिया अजब निराली 
 
मन की भाषा एक पहेली


3 comments:

  1. इस कविता का विषय: मन की एक अजब दुनिया

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  2. मन की दुनिया अजब निराली

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  3. इस कविता का विषय- निराली खुशहाली दुनिया

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