Wednesday, 3 December 2014

आज़ाद लबों से कुछ मैं लिख दूं

आज़ाद लबों से कुछ मैं लिख दूं

आज़ाद लबों से कुछ तुम लिख दो 
आज़ाद लबों से कुछ मैं लिख दूं

कुछ अफ़साने , कुछ मीठी यादें
कुछ तुम लिख दो , कुछ मैं लिख दूं

अंजामे मुहब्बत , सबको है पता
वो छुप – छुपकर मिलना सबको है पता

वो प्यार की भीनी – भीनी खुशबू को
कुछ तुम करो बयाँ , कुछ मैं कर दूं

माना अज़ीज़ हैं हम सब उसको
कुछ दूर हैं , कुछ उसके करीब हैं

उसके नज़रे करम का सबको पता
 कुछ इबादत तुम करो , कुछ इबादत मैं कर लूं

अरमानों की कश्ती क्यों डूबी
इसमें था किसी का कसूर नहीं

कुछ वो झिझके , कुछ मैं झिझका
कुछ तुम सिसको, कुछ मैं सिसकूं

उनको था मुझसे गिला नहीं
मुझको था उनसे गिला नहीं

वो उनका हुस्ने गुरूर था
मुझे अपनी मुहब्बत का शुरूर था

कुछ वो बहके , कुछ मैं बहका
कुछ तुम  उलझूं , कुछ मैं उलझूं

रखा था जिसे पलकों पर मैंने
वो कौन थी मुझको पता नहीं

उसकी मीठी – मीठी बातों पर
मुझे यकीं था , मुझको पता नहीं

उसका रूठ के जाना  , नागवार गुजरा
कुछ उसे रास न आया , कुछ मुझे नहीं

उस खुदा की मर्ज़ी के आगे
बस चलता किसी का जोर नहीं

मांगी थी मुराद इबादत की
ये था उसको मंज़ूर नहीं

मैं भटका यहाँ और वहां
उसके दीदार की आस लिए

कुछ वो रोये , कुछ मैं रोऊँ
कुछ वो सिसके , कुछ मैं सिसकूं

आज़ाद लबों से कुछ तुम लिख दो 
आज़ाद लबों से कुछ मैं लिख दूं



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