Wednesday 24 December 2014

गर तुझे मुझसे मुहब्बत है सनम


गर तुझे मुझसे मुहब्बत है सनम

 

गर तुझे मुझसे मुहब्बत है सनम
 
फिर क्यों हो किसी बात का गम
 

तेरी मुहब्बत मेरी अमानत हो सनम
 
फिर क्यों हो किसी बात का गम
 

कायम रहे तेरी मुहब्बत का करम
 
फिर क्यों हो किसी बात का गम
 

क़ुबूल हो तुझे जो मेरी वफ़ा सनम
 
फिर क्यों हो किसी बात का गम
 

मेरे ख्यालों में तेरा बसर हो सनम
 
फिर क्यों हो किसी बात का गम
 

रोशन जो मेरी रातें हो जाएँ सनम
 
फिर क्यों हो किसी बात का गम
 

मेरी ख्वाहिशों पर जो हो खुदा का करम
 
फिर क्यों हो किसी बात का गम
 

तेरी बाहों का मुझे सहारा मिल जाए सनम
 
फिर क्यों हो किसी बात का गम
 

तेरे गम को जो अपना बना लें हम
 
फिर क्यों हो किसी बात का गम
 

मेरा हर लफ्ज़ ग़ज़ल हो जाए सनम
 
फिर क्यों हो किसी बात का गम


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