Friday, 12 December 2014

सुबह – सुबह की भीनी खुशबू



सुबह – सुबह की भीनी खुशबू


सुबह – सुबह की भीनी खुशबू
लेकर आई स्वप्न सुनहरे 
 
सुबह का सूरज हो जाऊं मैं
शाम कहे तुम चन्दा मेरे


पुष्प कहे तुम कहो कहानी
खुशबू से पुष्पित जीवन की 
 
सरसों की बाली ये बोले
मुझ सी न्यारी हो सुबह तुम्हारी


फिर बंसंत की बारी आई
जीवन में उजियारी छाई 
 
स्वप्न से जागो , सुबह में जियो
पुष्पित करो राह जीवन की


कोयल की कूक ये बोले
अलख जगाओ , सुर संगम की 
 
छूट गयी जो छैयां तुझसे
उनको पास बुलाओ तुम


रौशनी के पार का जीवन
उससे खुद को मिलाओ तुम 
 
सपने तेर सुबह सवेरे
सोने मत दो जागो तुम


डगर – डगर है जीवन का रस
खुद को महकाओ तुम 
 
आग में तपकर सोना होना
जीवन को सिखलाओ तुम


जीवन से लम्बे हैं बन्दे
ये जीवन के रस्ते 
 
स्वप्न को तुम सच कर दिखाना
इसको मत झुठलाओ तुम


ठंडी हवा के झोकों से
जीवन राह सवारों तुम 
 
सत्य के रूप हैं कितने निराले
इनसे नयन मिलाओ तुम


सुबह – सुबह की भीनी खुशबू
लेकर आई स्वप्न सुनहरे 
 
गगन विशाल करो जीवन का
आकाश मार्ग पर जाओ तुम

1 comment:

  1. यह कविता हमारे जीवन की सफलता पर आधारित है।

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