Sunday, 28 December 2014

फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं


फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं
 

फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं
 
कोई तो ऎसी सुबह हो खुदाया मेरे
 

जख्म दिल के नासूर हो जाएँ कहीं
 
उसके दीदार की कोई तो सुबह हो खुदाया मेरे
 

रातों की नींद , दिल का चैन अब नहीं मेरे
 
उसका पहलू नसीब हो मुझको खुदाया मेरे
  

उसकी कमसिन अदाओं का हुआ मुझ पर जादू
  
उसकी बाहों का मुझे सहारा मिले खुदाया मेरे
  

उसकी आँखों में डूबने का मन करता है मेरा
 
कुछ तो मेरी खबर कर खुदाया मेरे
 

कहीं किसी मोड़ पर जो वो मिल जाए मुझे
 
कुछ ऐसा तो करम कर खुदाया मेरे
 

मैं उसके दीदार की आस लिये ज़िंदा हूँ
 
क़यामत हो उसका दीदार हो जाए खुदाया मेरे
 

फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं
 
कोई तो ऎसी सुबह हो खुदाया मेरे

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