चलो
चलें दूर गगन की ओर
चलो
चलें दूर गगन की ओर
प्रकृति
से आलिंगन की ओर
पुष्पों
से चलो करैं दोस्ती
नदियों
के उस छोर
चलो
चलें दूर गगन की ओर
प्रकृति
से आलिंगन की ओर
कानन
की प्यारी – प्यारी वादियाँ
मुस्काएं
जूँ चितचोर
पेड़ों
पर कोयल गायें
बारिश
में नाचे मोर
चलो
चलें दूर गगन की ओर
प्रकृति
से आलिंगन की ओर
सपनों
को दें नई मंजिलें
चलें
प्रकृति की गोद
इठलाते
भंवरों की गुन – गुन
पकड़ें
मधुर संगीत की डोर
चलो
चलें दूर गगन की ओर
प्रकृति
से आलिंगन की ओर
पावन-
निर्मल,
स्वप्न
की डोर
लिए
हम चलें,
पर्वत
की छोर
स्वप्न,
सत्य
हो जाएँ मेरे
पकड़,
संकल्प
की डोर
चलो
चलें दूर गगन की ओर
प्रकृति
से आलिंगन की ओर
आँचल
में हो ख़ुशी हमारे
हो
संस्कृति ,
संस्कारों
का मोल
जीवन
दर्शन नैया में हम
चलें
धर्म की ओर
चलो
चलें दूर गगन की ओर
प्रकृति
से आलिंगन की ओर
मिटटी
की है महक पुकारे
चलो
चलें खेतों की ओर
मोह
माया के जाल से छूटें
चलो
चलें मोक्ष की ओर
चलो
चलें दूर गगन की ओर
प्रकृति
से आलिंगन की ओर
देवालय
की घंटी बाजे
मन
मेरा जग में नहीं लागे
प्रभु
भक्ति का दीप जला के
चलें
दूर हिमालय की गोद
चलो
चलें दूर गगन की ओर
प्रकृति
से आलिंगन की ओर
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