Thursday 24 June 2021

काश मेरा मित्र उनसे निवेदन कर लेता - संस्मरण

यह घटना वर्ष 1985 की है  एक बार मैं और मेरा मित्र रेलवे स्टेशन पर किसी परिचित को छोड़ने गए | चूंकि हमारे 

यहाँ यह प्रचलन था कि जो भी मेहमान घर आये उसे लेने स्टेशन  जाएँ और जब वह वापस जाए तो उसे स्टेशन  छोड़ 

कर आयें | तो हुआ यूं कि मेहमान को ट्रेन में बिठाकर जब हम स्टेशन से बाहर आ रहे थे तो मेरे मित्र को टिकट चेकर 

ने रोक लिया और पूछा टिकट दिखाने के लिए | मेरा मित्र थोड़ा जिद्दी और अक्खड़ स्वभाव का था सो उसने टिकट 

चेकर से बहस करनी शुरू कर दी उसका परिणाम यह हुआ कि उसे करीब 150 रुपये का अर्थदंड भोगना पड़ा 

जबकि इतनी राशि उसके घर में उपलब्ध भी नहीं थी सो पड़ोसी  से उधार लेकर उस राशि का भुगतान किया गया | 
                       
           अफ़सोस इस बात का था कि वह मेरी तरह विनम्रता से बोलकर भी अपना काम चला सकता था किन्तु उसके 

जिद्दी स्वभाव ने उसके परिवार को भी मुसीबत में डाल  दिया | इसलिए हमेशा प्यार से हो सके तो व्यवहार करें | प्रेम 

से आप किसी का भी दिल जीत सकते हैं | शेष आप खुद समझदार हैं |

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