बात 2005 के मई माह की है शायद कल से हमारा ग्रीष्म अवकाश आरम्भ होना था | मैंने अपने पुस्तकालय में बैठे -
बैठे यूं ही " सत्य " विषय पर चार पंक्तिया लिखीं | इसी बीच हमारे ही विद्यालय के प्राथमिक शिक्षक श्री लालजी कोल
का पुस्तकालय में आगमन हुआ जिनका हिंदी भाषा का ज्ञान काफी अच्छा है | मैंने अपनी इस पहली रचना " सत्य"
की चार पंक्तियाँ उन्हें दिखायीं | वे उन पंक्तियों को पढ़कर बहुत ही प्रभावित हुए और कहा " बहुत ही सुन्दर गुप्ता
जी इसे आप पूरा कीजिये और आगे भी इसी तरह से लिखते रहिये " |
उनके द्वारा कहे गए शब्दों को सुनकर मैंने स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया और अनवरत लिखते
रहने की प्रेरणा ने मेरे भीतर ऊर्जा का संचार कर दिया | आज मुझे लिखते हुए करीब 17 वर्ष हो गए हैं | अभी तक
मैंने करीब 1200 कवितायें, गीत ग़ज़ल , भजन , शायरी , विचार और लेख ब्लॉग के माध्यम से प्रकाशित किये हैं |
जिनके माध्यम से मुझे अपार स्नेह की प्राप्ति हुई है | मैं श्री लालजी कोल जी का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे प्रेरित किया |
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