Thursday, 24 June 2021

मेरा वो रिक्शे को धक्का देना - संस्मरण

मेरी माताजी जब भी बाजार या मंदिर जाया करती थीं तो मुझे अपने साथ ले जाया करती थीं | मुझे रिक्शे पर बैठने 

का बड़ा शौक था | इसी  बहाने मैं बाजार से सामान खरीदने की कला सीख गया | 

                                                यहाँ मैं आपके साथ एक महत्वपूर्ण बात साझा करना चाहता हूँ वह यह कि छोटी - 

छोटी बातें हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं | बात यह कि मैं और मेरी माताजी जब रिक्शे पर जाते या 

लौटते समय  किसी चढ़ाई वाली सड़क से गुजरते थे तो मेरी माँ मुझे रिक्शे से उतारकर पीछे से रिक्शे को  धक्का 

लगाने को कहती थी इसके पीछे का उद्देश्य बचपन में तो समझ नहीं आता था किन्तु जैसे -  जैसे बड़े होते जाते हैं 

तब इन सभी बातों का मर्म हमें समझ में आने लगता है | जरूरतमंद की मदद करना हमारा फ़र्ज़ होना चाहिए | 

किसी अंधे व्यक्ति को सड़क पार कराना , किसी को पता ढूँढने में मदद करना, प्यासे को पानी पिलाना आदि ऐसे 

बहुत से कार्य हैं जो हम कर सकते हैं | जरूरत है तो केवल आत्मविश्वास की और श्रद्धा की | आप हमेशा एक बात 

ध्यान में रखें कि आपको जो चीज प्रिय है उसे किसी गरीब को जरूर खिलाकर देखें | उस दिन आप स्वयं को सबसे 

ज्यादा खुश महसूस करेंगे |

            कोशिश करके देखिएगा |


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