क्यूं कर आये हैं , इस धरती पर
क्या करना है , क्या पाना है
भौतिक जगत में भटक रहे हम
पल - पल खुद को समझाना है
संस्कारों को दे दी तिलांजलि
आधुनिकता में ढल जाना है
क्यूं कर आये इस धरती पर
इसका भेद नहीं जाना है
मानव होकर जीवन पशु सा
क्यूं कर यहीं बिखर जाना है
क्यूं मैं भागूं , क्यूं तुम भागो
क्यूं कर यहीं पर, थक जाना है
जीवन का सपना कैसा हो
क्या हमने यह जाना है
जीवन का सत्य कैसा हो
क्या हमने ये पहचाना है
क्यों कर आये इस धरती पर
क्यूं कर नहीं मर्म जाना है
रह जाएगा सब कुछ यहीं पर
क्या यह सत्य हमसे अनजाना है
फिर भी भागमभाग मची है
क्या कर कोई आस बची है
क्यूं कर आये हैं , इस धरती पर
क्या करना है , क्या पाना है
भौतिक जगत में भटक रहे हम
पल - पल खुद को समझाना है
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