Monday 15 February 2016

सब मौन हैं क्यों


सब मौन क्यों हैं

बालिका भ्रूण हत्या , एक नासूर है , फिर भी

सब मौन क्यों हैं ?

चौराहों , सड़कों पर खून से लथपथ
फेंकी जा रहीं हज़ारों निर्भया देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

आधुनिक सामाजिक विचारों से
दिशाहीन होती युवा ऊर्जा , फिर भी

सब मौन क्यों हैं ?

सामाजिक बंधनों , रिश्तों को रूढ़िवादिता का
नाम देकर , सामाजिक दायित्वों से पल्ला झाड़ती
इस युवा पीढ़ी के इन आधुनिक विचारों को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

नए असामाजिक रिश्तों से पोषित होती ये युवा पीढ़ी
live – in – relationship , my body my rule  का अप्राकृतिक उदघोष करती
इस युवा पीढ़ी को इन नवीं विचारों से पोषित होता देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

नशे का बाज़ार चलाते , नशे के सौदागर
देश की युवा धरोहर को कमाई की
चक्की में पीसते , ये देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

संस्कृति, संस्कारों को रूढ़िवादिता कहकर
आदर्श की नरः से पलायन करती
इस आधुनिक विचारों से पोषित जिन्दगी देखकर भी
सब मौन क्यों हैं ?

सुविचारों पर ,आधुनिक विचारों के कुप्रभाव देखकर भी
सब मौन क्यों हैं ?

परमाणु बमों के आतंक के साए में
डरी – डरी , सहमी – सहमी सी
जिंदगियां देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

आतंक के साए में पल- पल सिसकती
मौत के साए से आशंकित जिंदगियां देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

नानक , कबीर,  गौतम, विवेकानंद के
विचारों से पल्ला झाड़ती वर्तमान जिन्दगी से परिपूर्ण  वर्तमान असामाजिक परिदृश्य
देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

“डर के बाद जीत “ को चरितार्थ करने के प्रयास में
जिन्दगी  के साथ
खेल खेलती युवा पीढ़ी का
यह आप्राकृतिक कृत्य देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का होता पतन ,
स्वयं की ही निर्मित मुश्किलों से
जूझता मानव
परम्पराओं पर से उठती श्रद्धा और विश्वास देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

कम प्रयासों से अधिक पाने की लालसा
बुजुर्गों का समाज में घटता स्थान और सम्मान देखकर भी
सब मौन क्यों हैं ?
भौतिक विश्व में जिन्दगी का चरम ढूँढने
का असफल प्रयास करते मानव को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

देवालयों को छोड़ पब और बार की ओर
पलायन करती युवा पीढ़ी को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

मानव का मानव पर से उठता विश्वास
मानव का मानव द्वारा पतन,
अप्राकृतिक कृत्यों में लिप्त
मानव को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

आध्यात्मिक शिक्षा पर लग रहे
ग्रहण को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

पल – पल हो रहे चीरहरण और
बढ़ती असुरक्षा की भावना को देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

आदर्शों पर हो रहा कुठाराघात ,
संस्कृति और संस्कारों पर हो रहा प्रहार
परम्पराओं को रूढ़िवादिता की नवीन परिभाषा से पोषित करने का असामाजिक एवं अनैतिक प्रयास

आधुनिकता की अंधी भट्टी में पककर कुंठित होता समाज
विकास के अमानवीय आयामों को स्थापित
करता आज का समाज
ये सब देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

वो कहते हैं खुद को
खुदा का बंदा और
बहा रहे हैं खून
इंसानियत के रखवालों का
इन इंसानियत को
नोच खानेवाले चरित्रों को
देखकर भी

सब मौन क्यों हैं ?

चलो चलें
इस मौन को तोड़ें
इन चीरहरण की घटनाओं पर लगायें विराम
आधुनिक विचारों से पोषित होती युवा पीढ़ी को
राम , नानक के आदर्शों से परिचित करायें

संस्कृति और संस्कारों से पोषित परम्पराओं का
इस युवा पीढ़ी को आचमन करायें

प्रकृति हो रहे अमानवीय अत्याचार से धरती माँ को मुक्त कर
स्वच्छ पर्यावरण की ज्योति जलायें

नारी शक्ति की ऊर्जा से समाज को
पोषित करें
परमाणु मुक्त भूमंडल का विस्तार करें
विश्व शान्ति का सन्देश जन – जन तक पहुंचायें

आतंक की परिभाषा को समाप्त कर
विश्व बंधुत्व की भावना का विकास करें

भौतिक सुख से स्वयं को मुक्त कर
आध्यात्मिक सुख का बिगुल बजाएं

देवालयों को मुक्ति मार्ग की संज्ञा दे
समाज , राष्ट्र और समस्त भूमंडल को
विश्व शांति , धार्मिक एकता , विश्व बंधुत्व का केंद्र बनाएं

आओ इस मौन को तोड़ें
एक नया विश्व बनाएं
एक नया विश्व बनायें






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