साधारण क्यों न रहूँ मैं
साधारण क्यों न रहूँ मैं
संस्कारों से बंधा क्यों न रहूँ मैं
आदर्श की राह क्यों न चलूँ मैं
रिश्तों से बंधा क्यों न रहूँ मैं
परम्पराओं से रिश्ता क्यों न रखूँ मैं
संस्कृति पर अपनी गर्व क्यों न करूँ मैं
सादा जीवन क्यों न जियूं मैं
उच्च विचार क्यों न रखूँ मैं
उत्कर्ष राह क्यों न चलूँ मैं
अभिनन्दन मार्ग पर क्यों न चलूँ मैं
जीवन को ,जीवन क्यों न समझूं मैं
पुष्प बन ,पुष्प सा क्यों न खिलूँ मैं
अहंकार से क्यों न बचूं मैं
सदविचारों में डूबा क्यों न रहूँ मैं
भक्ति मार्ग को अपने जीवन का गहना क्यों न करूँ मैं
मोक्ष को जीवन का अंतिम सत्य क्यों न करूँ मैं
माता - पिता के आँचल तले , जीवन क्यों न पाऊँ मैं
गुरु के चरणों में मस्तक क्यों न झुकाऊँ मैं
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