Monday, 15 February 2016

पाप क्यों करता है इंसान , तुझसे डरता नहीं है क्यों


पाप क्यों करता है इंसान , तुझसे डरता नहीं है क्यों

पाप क्यों करता है इंसान , तुझसे डरता नहीं है क्यों
सुबहशाम ये गलती करता , तुझ पर भरोसा नहीं है क्यों

अंतर्मन से इसके पूछो , इतनी चंचलता है क्यों
पलपल गिरता , उठता - गिरता, फिर भी ये ऐसा  है क्यों

भागता ये धन की चाह में, तुझे ढूंढता नहीं ये क्यों
सुखविलास की चाह में उलझा , तेरे दर का पता नहीं है क्यों

जीवन का उद्देश्य जाने, जीने का ये मर्म पहचाने
देवालय को घर से निकले, मदिरालय में मिलता है क्यों

अभिनन्दन की राह सूझे, ठोकर खा खा बढ़ता ये क्यों
यश अपयश का भेद जाने, पता नहीं ये जीता है क्यों

लोभ  -  मोह में पलपल फंसता , फिर भी ये संभालता नहीं है क्यों
अनुनयविनय का भाव जाने, असत्य वचन भाता इसको क्यों

आदर्शों से मुंह ये मोड़े , तुझसे ये नाता जोड़े
भोग  -  विलास को सब कुछ समझे, तुझ पर एतबार नहीं है क्यों

अनुकम्पा हो तेरी प्रभु जी , जीवन को साकार करो
जन्म दिया जब मानव तन में, जीवन का उद्धार करो



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