पाप क्यों करता है इंसान , तुझसे डरता नहीं है क्यों
पाप क्यों करता है इंसान , तुझसे डरता नहीं है क्यों
सुबह –शाम ये गलती करता , तुझ पर भरोसा नहीं है क्यों
अंतर्मन से इसके पूछो , इतनी चंचलता है क्यों
पल– पल गिरता , उठता - गिरता, फिर भी ये ऐसा है क्यों
भागता ये धन की चाह में, तुझे ढूंढता नहीं ये क्यों
सुख—विलास की चाह में उलझा , तेरे दर का पता नहीं है क्यों
जीवन का उद्देश्य न जाने, जीने का ये मर्म न पहचाने
देवालय को घर से निकले, मदिरालय में मिलता है क्यों
अभिनन्दन की राह न सूझे, ठोकर खा — खा बढ़ता ये क्यों
यश — अपयश का भेद न जाने, पता नहीं ये जीता है क्यों
लोभ - मोह में पल— पल फंसता , फिर भी ये संभालता नहीं है क्यों
अनुनय— विनय का भाव न जाने, असत्य वचन भाता इसको क्यों
आदर्शों से मुंह ये मोड़े , तुझसे ये न नाता जोड़े
भोग - विलास को सब कुछ समझे, तुझ पर एतबार नहीं है क्यों
अनुकम्पा हो तेरी प्रभु जी , जीवन को साकार करो
जन्म दिया जब मानव तन में, जीवन का उद्धार करो
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