Tuesday, 11 February 2014

कल्पना में क्यों जी रहे तुम

कल्पना में क्यों जी रहे तुम

कल्पना में क्यों जी रहे तुम
जीवन को साकार करो तुम
ज्ञान का अमृतपान करो
शिक्षा को वरदान धरो तुम

कल्पना में क्यों जी रहे तुम

अहंकार न ध्यान धरो तुम
अम्बर सा विशाल बनो तुम
पाषाण सा कठोर न होना
सहृदय सुकुमार बनो तुम

कल्पना में क्यों जी रहे तुम

सागर सा व्यापक होना तुम
स्वर्ण सी आभा हो
सौन्दर्य तेरा दे मादकता
धरती के सम्राट बनो तुम

कल्पना में क्यों जी रहे तुम

कीर्ति तेरा अभिमान बने
निर्मल मन पूँजी हो तेरी
संकल्पपूर्ण तेरा जीवन हो
विश्व विजय सौभाग्य बनो तुम

कल्पना में क्यों जी रहे तुम

उत्कृष्ट कर्म तेरी डगर हो
अनुकूल तेरा हर सफ़र हो
आकाश के तारे बनो तुम
ईश्वर के प्यारे बनो तुम

कल्पना में क्यों जी रहे तुम

विश्व में न्यारे बनो तुम
उंचाइयां चरण चूमें तुम्हारे
सम्पूर्ण गगन तेरी हो छाया
ज्ञान का आधार बनो तुम


कल्पना में क्यों जी रहे तुम 

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