Sunday 2 February 2014

पर्वत पिघले हिलती धरती

पर्वत पिघले हिलती धरती

पर्वत पिघले हिलती धरती
अब तो कुछ समझो यारों

कहीं समंदर दोल रहा है
हमसे कुछ – कुछ बोल रहा है

अब तो कुछ समझो यारों

लगता टूटा – टूटा सा मानव

अब तो कुछ समझो यारों

धू – धू करती यह धरती
मरते प्राणी औए ये पंक्षी

पीने को पानी न मिलता

अब तो कुछ समझो यारों

मातृ प्रेम से किया किनारा
पल – पल बिकता है सारा

हाय – हाय कर देश पुकारे

अब तो कुछ समझो यारों

पल – पल जीता , पल – पल मरता
पल – पल गिरता , पल- पल उठता

उठ कर फिर गिरता मानव

अब तो कुछ समझो यारों

बिखरा – बिखरा हर – क्षण जीवन
जल्दी – जल्दी सरके जीवन

नव – शिशु कुछ कहता हमसे

अब तो कुछ समझो यारों

गली – गली अब काम पिपासा
मंदिरों से छूटा नाता

बियर बार सब डोल रहे हैं


अब तो कुछ समझो यारों 

No comments:

Post a Comment