Wednesday, 5 February 2014

हम चलें वहां

                            हम चलें वहां

हम चलें वहां
जहां प्रक्रति अपनी
चंचल चितवन से
सबको निहारती हो

हम वहां मुड़ें
जहां जीवन ही जीवन हो
न कोई गरीब हो
न कोई अमीर हो

हम वहां रुकें
जहां चन्द का बसेरा हो
खिलती हो चांदनी
खिलता सवेरा हो

हम वहां बढें
जहां बादल
आसमां को छूता हो
जहां संवारता है जीवन
जहां खिलती फिजां हो

हम चलें उस दिशा में
जहां पलता उजाला हो
अँधेरे को चीरती चांदनी
चमकती सुबह हो

हम चलें उस पथ पर
जहां परिश्रम का रेला हो
सत्य पलता हो
जिस ज़मीं पर
शांति का बसेरा हो

हम झूलें उस पालने में
जहां प्यार के झूले में
झूलते सब
जहां हर पल उन्माद हो
एक पल भी न अवसाद हो

हम पलें उस ज़मीन पर
जहां प्रकृति की गोद में
पलता जीवन
अपनी पुण्यता से
सबको  पवित्र करे

हम चलें वहां
जहां प्रक्रति
अपनी चंचल चितवन से
सबको प्रेमपूर्वक निहारती हो

सबको प्रेमपूर्वक निहारती हो

सबको प्रेमपूर्वक निहारती हो

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