Sunday, 2 February 2014

आज आदमी सहमा – सहमा सा क्यों है?

आज आदमी सहमा – सहमा सा क्यों है?

आज आदमी
सहमा – सहमा सा क्यों है ?

आज आदमी
डरा - डरा  सा क्यों है ?

आज आदमी
वक़्त – बेवक्त हो रही
अनैतिक घटनाओं से
घबराया – घबराया सा क्यों है ?

एक अजीब सी
घुटन वातावरण में
घुल गयी है
एक अजीब सा
वहशीपन वातावरण को
संगीन बना रहा है
आज आदमी
तड़पता – तड़पता सा क्यों है ?

समाज में कुप्रवृत्तियों ने
अपना दामन
पसार लिया है
आज आदमी
छुपता – छुपता सा क्यों है ?

आज नवयौवन
अपने पतन के
रास्ते अग्रसर हो रहा है
आज आदमी
बेसहारा – बेसहारा सा क्यों है ?

नारी व्यथाओं का
एक नया दौर सा
आ गया है
आज आदमी
बेशर्म – बेशर्म सा क्यों है ?

आज वर्चस्व और अपने
आपको जीवित रखने के बीच
होड़ सी लगने लगी है
आज आदमी
बिकता – बिकता सा क्यों है ?

आज भौतिक  जगत की
राह पर
भागते हम
हर पल विचलित से
लगते हैं
आज आदमी
पंगु – पंगु सा क्यों है ?

आज दूसरों की
खुशियाँ
हमारी परेशानियों का सबब हैं
आज आदमी

परेशां – परेशां सा क्यों है ?

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