Tuesday, 11 February 2014

हिमालय की गंगा में

हिमालय की गंगा में

हिमालय की गंगा में था अमृत सा पानी
आज बन गया यह एक नयी कहानी

किसने करी ये गंगा से बेईमानी
हिमालय की गंगा में था अमृत सा पानी

आँखों में उसकी अजीब सी कहानी
सिसकती , डरी सी है उसकी जवानी

हिमालय की गंगा में था अमृत सा पानी
आज बन गया यह एक नयी कहानी

आँखों में उसने हैं सपने संजोये
माला में उसने हैं मोती पिरोये

सपनों से छेड़छाड़ की नयी ,नहीं है ये कहानी
हिमालय की गंगा में था अमृत सा पानी

आज बन गया यह एक नयी कहानी

नन्ही मुस्कान लिए जन्मी वह प्यारी
तोतली जुबां सबको लगती है न्यारी

मुस्कान बेजुबान आज ,समाज पर है भारी
हिमालय की गंगा में था अमृत सा पानी

आज बन गया यह एक नयी कहानी

फूल उसकी चाहत के अब तो यहाँ खिलने दो
रूप की मादकता को अब तो तुम निखरने दो

महिमा नारी की हमने न जानी
उसकी आँखों में अब आये न पानी

हिमालय की गंगा में था अमृत सा पानी

आज बन गया यह एक नयी कहानी

सोई हुई आत्माओं अब तो तुम जागो
नारी  व्यथा पर अब तो तुम तरस खाओ

हो सके तो अपनी कुंठाओं पर विराम है लगाओ
जननी को जननी सा ,अधिकार है दिलाओ

माता के रूप को न तुम यूं लजाओ
गंगा को आओ हम दें एक नई रवानी 

हिमालय की गंगा में था अमृत सा पानी

आज बन गया यह एक नयी कहानी 

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