Tuesday, 11 February 2014

कविता कहाँ गुम हो गई तुम

कविता कहाँ गुम हो गई तुम

आज कविता कहाँ गुम हो गई तुम  
  
युग बीते

विचार बदले

सामाजिक विकृतियाँ

मानवीय विचारों पर

हावी हो गयीं

विषय – दर – विषय बदले

शुद्ध विचार

बीती बातें हो गए

इन सबके साथ

कविता कहाँ गुम हो गई तुम

मानसिक विक्र्तियाँ

प्रकृति पर कुठाराघात

प्राक्रतिक सौन्दर्य पर प्रहार

आसमां की निराली छटा पर

लग रहा ग्रहण

इन सबके बीच

कविता कहाँ गुम हो गई तुम

आदर्शों से होता किनारा

मानव जीता बेसहारा

संवेदनायें हो रहें क्षीण

संस्कृति, संस्कारों पर

पड़ रहा आधुनिकता का प्रभाव

इन सबके बीच

कविता कहाँ गुम हो गई तुम 

मानव का मानव के प्रति अलगाव

मानव मन पर बढ़ता

काम का प्रभाव

बड़ों के प्रति

कम होता

सम्मानपूर्ण व्यवहार

आज की माओं के मन से

घट रहा

सीता के आदर्शों का प्रभाव

आधुनिकता की चमक

और

जीवन की भागमभाग

इन सबके बीच

कविता कहाँ गुम हो गई तुम

माँ की उन मीठी – मीठी

लोरियों का होता अभाव

दादा के हाथों से

दूर होते उन कोमल – कोमल

अँगुलियों के स्पर्श का लगाव

वो बचपन की शरारतों का दिखता

चारों ओर अभाव

इन सबके बीच

कविता कहाँ गुम हो गई तुम

कविता कहाँ गुम हो गई तुम

कविता कहाँ गुम हो गई तुम 





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