आँखों से बहते
आँखों से बहते
आंसुओं का सैलाब
ग़मगीन सा लगता
जिन्दगी का सफ़र
आँखों में तैरता डर
कांपती साँसों के साथ
ढूँढता उसे
जिसने उसे
बरसों तड़पने के लिए
अकेला छोड़ दिया है
धकेल दिया है
उस ओर जहां
केवल अशांति , कुंठा ,
डर , अविश्वास ने
जगह बना ली है
सिसकती साँसों के साथ
बाट जोहता
कल की
पल – पल डरता
जीवन मर्म से अनभिज्ञ
बार – बार
दिशाहीन
सफ़र की ओर
अग्रसर होता
मिलती निराशा
पास नहीं आशा
कुंठित जीवन शैली
मर्यादा , अनुशासन का अभाव
साथ – साथ
जिस पर पड़ता
पाश्चात्य का प्रभाव
आधुनिकता का प्रभाव
आत्म विश्वास की कमी
असफल होने का डर
पल – पल गिरने की एहसास
जीवन आशा को
पाने की विवशता
असमय निराशा
स्वयं को ढूँढने का
असफल प्रयास
मुखरित होगा
कब मेरा कल
इसी प्रयास में
कब होंगे
तारे मेरी झोली में
आसमान की
सैर मिलेगी
कब मुझको
कब खिलूँगा
मैं पुष्प बनकर
क्या मैं रोशन
कर पाऊंगा
पुण्य धरा को
इसी चाह में
ढूंढ रहा वह
कैसी होगी
मेरी
जिन्दगी की शाम
इन्हीं
प्रश्न जालों में उलझा
मर्म
जिन्दगी का समझने वह ..................
No comments:
Post a Comment