Sunday 2 February 2014

परतंत्रता के चंगुल में

परतंत्रता के चंगुल में

परतंत्रता के चंगुल में
फंसा हर भारतीय

अपनी आजादी के
सपने संजो रहा था

और संघर्षरत था
कुछ इस आस में

हम नहीं तो
कम से कम
आने वाली पीढ़ी

स्वतंत्रता के बादलों तले
स्वच्छ वातावरण में
सांस ले सके

हज़ारों कुर्बानियां
बलिदान ,त्याग ,समर्पण,

खोते परिवार को
देश की आन पर

मर मिटने निकलते
शूरमा

दिखाते राह ,
जगाते देश प्रेम

प्रेरणा स्रोत बन
दिलों के भीतर उतर

अपने त्याग , समर्पण को
करते सार्थक

अंग्रेजों को
चटाते धूल

अपनाते कभी हिंसा तो
कभी अहिंसा का सहारा

सत्याग्रह का नारा

तो कभी
अनिश्चितकालीन भूख का दामन
थामते

परतंत्र हाथों के
पड़ते डंडों व
गोलियों की
परवाह किये बिना

अपने आपको
इस प्रयास में

कि कभी तो स्वतंत्रता की
भट्टी में आंच में हाथ
सेंकने को मिलेंगे

खुला आसमां होगा
जय भारत जय घोष होगा

हम सब एक होंगे

न कोई बड़ा होगा
न कोई छोटा होगा

स्वतंत्रता के झंडे के
फहराने का दिन भी आया

आज साठ वर्षों  के बाद भी
उन वीरों , उन सपूतों ,

देश के प्यारों के सपनों को
राह न मिल सकी

बड़े , बड़े होते गए
छोटे गर्त में चले गए

देश प्रेम का गला घोंट दिया गया
व्यक्तिगत व्यवहार हो गए

राजनीति का कुचक्र
देश पर भारी हो गया

रक्षक, भक्षकों की
श्रेणी में तब्दील हो गए

दुश्मन सफल होने लगे
देश के भीतर

जयचंदों की
कतारें लग गयीं

न्यायपालिका, ताकतवर के
घर की रौनक हो गयी

कार्यपालिका , राजनीतिज्ञों के स्वार्थ की
बलि चढ़ गयी

युवा पीढ़ी
आधुनिकता एवं स्वच्छंद विचारों के
गर्त में डूब गयी

मर्यादायें समाप्त हो गयीं

बड़े छोटे में भेद न रहा

भारत खड़ा रहा

भारतीयता ख़त्म हो गयी

आज ये महसूस हो रहा है
कि काश हम

आज भी परतंत्र होते

एक दूसरे के लिए होते

सामाजिकता बनी रहती

देश प्रेम की आशा बनी रहती

कम से कम इतने बुरे दिन
तो नहीं देखने पड़ते

आज भारत है कहाँ
कोई ढूँढो मेरे भारत को

कोई ढूँढो मेरे भारत को

कोई ढूँढो मेरे भारत को



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