Sunday, 2 February 2014

सार्थक हो जाए जीवन

सार्थक हो जाए जीवन

सार्थक हो जाए जीवन
करो प्रण इसी क्षण
नैतिकता की सीमा में
हम रहेंगे हर क्षण
दूर हों कुविचारों से

सत्मार्ग पर चलेंगे हम
कर मातृभूमि को नमन
कर वंदनीयों  का पूजन
सार्थक हो जाए जीवन

करो प्रण इसी क्षण

करैं गुरु का वंदन
करैं उनको शत –शत नमन
करैं हम शिक्षकों का सम्मान
जो जलकर दीये की तरह

करते रोशन हमारा भविष्य
जो सिखाते हमें आत्मसम्मान
सार्थक हो जाए जीवन
करो प्रण इसी क्षण

बात करैं हम संस्कृति की
पालें हम अपने भीतर संस्कारों को
मनाकर दिवस, त्योहारों को
सम्मान दें सुविचारों को

पालें अपने जीवन में बचपन के हर क्षण
करैं बात मानवता की हर क्षण
मिटायें कुरीतियों का घना कोहरा
सजायें सुविचारों से इस धरा को इसी क्षण

सार्थक हो जाए जीवन
करो प्रण इसी क्षण
मात – पिता को दें सर्वोपरि स्थान
भाई बहनों के रिश्तों को रख बरकरार

समाज को नयी दिशा से करैं सराबोर
देश हित में जियें हर क्षण
सार्थक हो जाए जीवन
करो प्रण इसी क्षण 

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