कैसे करूँ
विस्तार मैं अपना
कैसे करूँ
विस्तार मैं अपना
आकर मुझको राह
दिखा दो
पुण्यशील बन
खिलूँ धरा पर
ऐसे मेरे भाग्य
जगा दो
बनकर तरु छाया
तुम
मुझको कुछ पल
विश्राम करा दो
पावन हो जाए मन
मेरा
परहित हो जाए तन
मेरा
मुझ पर ऐसी कृपा
जगा दो
मुझको धरती पर
पुष्प बना दो
कष्ट हरूं बनकर
तरु छाया
कष्ट हरूं बनकर
तरु औषधि
काश हरूं मैं
मानव बन के
कष्ट हरूं मैं
मानव तन के
ऐसा पुण्य बनूँ
मैं मानव
किस्मत मेरी तुम
चमका दो
कीड़ों जैसा जीवन
न हो
पुण्यशील तुम
जीव बना दो
आदर्श बन मैं
खिलूँ धरा पर
आकर मुझको दर्श
दिखा दो
आशीषों की कर दो
वर्षा
मानव श्रेष्ठ
तुम मुझे बना दो
कैसे करूँ
विस्तार मैं अपना
आकर मुझको राह
दिखा दो
पुण्यशील बन
खिलूँ धरा पर
ऐसे मेरे भाग्य
जगा दो
No comments:
Post a Comment