Wednesday, 5 February 2014

कैसे करूँ विस्तार मैं अपना

                   कैसे करूँ विस्तार मैं अपना

कैसे करूँ विस्तार मैं अपना
आकर मुझको राह दिखा दो

पुण्यशील बन खिलूँ धरा पर
ऐसे मेरे भाग्य जगा दो

बनकर तरु छाया तुम
मुझको कुछ पल विश्राम करा दो

पावन हो जाए मन मेरा
परहित हो जाए तन मेरा

मुझ पर ऐसी कृपा जगा दो
मुझको धरती पर पुष्प बना दो

कष्ट हरूं बनकर तरु छाया
कष्ट हरूं बनकर तरु औषधि

काश हरूं मैं मानव बन के
कष्ट हरूं मैं मानव तन के

ऐसा पुण्य बनूँ मैं मानव
किस्मत मेरी तुम चमका दो

कीड़ों जैसा जीवन न हो
पुण्यशील तुम जीव बना दो

आदर्श बन मैं खिलूँ धरा पर
आकर मुझको दर्श दिखा दो

आशीषों की कर दो वर्षा
मानव श्रेष्ठ तुम मुझे बना दो

कैसे करूँ विस्तार मैं अपना
आकर मुझको राह दिखा दो

पुण्यशील बन खिलूँ धरा पर
ऐसे मेरे भाग्य जगा दो





                              






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