Sunday 2 February 2014

डरता हूँ मैं

डरता हूँ मैं

डरता हूँ मैं
वर्तमान से और
आने वाले कल से

डरता हूँ मैं

रूढ़िवादी विचारों से
अंधविश्वास से उपजे
गलियारों से

डरता हूँ मैं

भृष्ट राजनीतिक विचारों से
समाज में पनप रही
आधुनिकता की बर्बरतापूर्ण जड़ों से

डरता हूँ मैं

क्रूर होती आधुनिक पीढ़ी से
असभ्य आचरण की ओर बढती
युवा पीढ़ी से

डरता हूँ मैं

उस बचपन से
जो आंसुओं की छाँव में
पलता हो
अनैतिक कर्मों में लिप्त
मानव से

डरता हूँ मैं

उस यौवन से
जहां सब कुछ गलत
होते हुए भी
सही लगने लगे

डरता हूँ मैं

उस तूफां से
जो असमय ही
काल बन
डस लेता है सबको

डरता हूँ मैं

उस शिक्षा प्रणाली से
जो आधुनिक विचारों के साथ
आगे बढ़ने को प्रेरित तो करे
किन्तु
नैतिक मूल्यों के बीज न बो सके

डरता हूँ मैं

उस देश से
जो अपनी संस्कृति व संस्कारों को
संजो न सके

डरता हूँ मैं

उस जीवन से
जो जीवन मूल्यों की
कीमत न समझे

डरता हूँ मैं

मैं डरता हूँ 

इसीलिए कि मैं
चिंतनशील प्राणी हूँ

सुसंस्कृत विचार
सुसंस्कारित व्यवहार

मेरी जीवन शैली है
मेरी पूँजी है

जो मुझे प्रेरित करती है

कि मानव
मानवपूर्ण व्यवहार की कठपुतली हो

आदर्शों की गंगा बहाना
जिसका कर्तव्य हो

सभी समाज का निर्माण
जिसके जीवन की परिणति हो

मैं ऐसा मानव चाहता हूँ

मैं ऐसे मानव की
संकल्पना के साथ जीता हूँ

मैं ऐसे मानव की

संकल्पना के साथ जीता हूँ 

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