Sunday 2 February 2014

कागज़ और जिन्दगी

                       कागज़ और जिन्दगी

कागज़ और जिन्द्गी का
अजब नाता है

दोनों का जन्म
एक प्राकृतिक प्रक्रिया है

जिसमे दोनों को ही

जीवन में अपना
मुकाम प्राप्त करना होता है

एक का भाग्य
मनुष्य निर्धारित करता है

वह है कागज़
जिस पर क्या लिखा जाए

कि इसका जीवन चरितार्थ
हो जाए

क्या कविता लिखी जाए

या कोई सन्देश लिखा जाए

या फिर
किसी के लिए कोई प्रेम सन्देश

या इस पर
भक्तिरस से पूर्ण कोई विचार

या धरती पर अवतरित

असाधारण व्यक्तित्वों का
जीवन चरित्र

या फिर
जीवन में हो रही

उथल – पुथल को
किया जाए चित्रित

या फिर कोई अप्रत्याशित घटना

या इस पर कोई चरित्र उकेरा जाए

पर चित्र हो किसका
सामाजिक परिवेश में

जी रहे अनगिनत
चरित्र

या उस अबोध बालक का
जो पालने में है

या फिर
इस कागज़ को
कोई आकार दिया जाये

आकार किसका
किसी देव का या किसी खिलोने का

ये सारी बातें आखिर
किसलिए हो रही हैं

चूंकि बालक का बचपन
कोरे कागज़ की भांति ही
होता है

उसे हम कोई भी

आकार दे सकते हैं
उस पर कुछ भी लिख सकते हैं

अतः करो कुछ निर्मित ऐसा कि
धरा पर वह चरित्र
अमर हो जाए

दूसरों के लिए
आदर्श बन जाए
 एक सम्पूर्ण जीवन |


No comments:

Post a Comment