Wednesday, 5 February 2014

खुशकिस्मत है तू

               खुशकिस्मत है तू

खुशकिस्मत है कि तू उसकी कृति है

खुशकिस्मत है तू कि  तुझ पर उसका साया है

खुशकिस्मत है तू कि तू उसकी रजा से यहाँ आया है

मान जो लेगा  तू उसकी सता को कि मुझ पर उसके करम का साया है

बनकर फूल तुझको इस जहां में खिलना है

इस चमन का नूर बनकर तुझे यहाँ संवरना है

कि राहों को आसाँ बनाकर तुझे मंजिल पाना है

कि यह जहां तेरी कर्म राह का ठिकाना है

निर्बाध तू बढ़ता जाए इस जहां में

तुझे ही तो आदर्श की गंगा बहाना है

तुझे पीछा करना नहीं किसी का

तुझे लोगों को अपने पीछे लाना है

कि मौसमे बहार में पतझड़ भी आता है

कि तुझे सावन बन पतझड़ पार जाना है

किस्सा नहीं बनना तुझे इस जहां में

खींचनी है आदर्शों की रेखा तुझको

कि कुछ तस्वीरें तुझे ऐसी बनानी हैं

जिसमे केवल जीवन ही जीवन रवानी है

कि गिरते हैं वो मुसाफिर राह में

कि जिनकी आँखों का सपना मंजिल नहीं होती

तू तो वो शै है इस जहां में

जिसे नए – नए आयाम स्थापित करके जाना है

कि तू वो सवार नहीं कि ज़रा सी आंधी से डर जाए

तू तो वो शै है जिसे तूफां को भी डराना है

मस्त चाल से जो तू आगे बढ़ता जाएगा

आसमां भी तेरी कामयाबी पर शरमायेगा

चाँद सितारे देंगे तुझे दुआ वहां से

तेरे प्रयासों से एक और चाँद

धरती पर खिले यह शुभकामना है मेरी

तेरे प्रयासों से एक और चाँद


धरती पर खिले यह शुभकामना है मेरी 

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