खुशकिस्मत है तू
खुशकिस्मत है कि तू उसकी कृति है
खुशकिस्मत है तू कि
तुझ पर उसका साया है
खुशकिस्मत है तू कि तू उसकी रजा से यहाँ आया है
मान जो लेगा तू
उसकी सता को कि मुझ पर उसके करम का साया है
बनकर फूल तुझको इस जहां में खिलना है
इस चमन का नूर बनकर तुझे यहाँ संवरना है
कि राहों को आसाँ बनाकर तुझे मंजिल पाना है
कि यह जहां तेरी कर्म राह का ठिकाना है
निर्बाध तू बढ़ता जाए इस जहां में
तुझे ही तो आदर्श की गंगा बहाना है
तुझे पीछा करना नहीं किसी का
तुझे लोगों को अपने पीछे लाना है
कि मौसमे बहार में पतझड़ भी आता है
कि तुझे सावन बन पतझड़ पार जाना है
किस्सा नहीं बनना तुझे इस जहां में
खींचनी है आदर्शों की रेखा तुझको
कि कुछ तस्वीरें तुझे ऐसी बनानी हैं
जिसमे केवल जीवन ही जीवन रवानी है
कि गिरते हैं वो मुसाफिर राह में
कि जिनकी आँखों का सपना मंजिल नहीं होती
तू तो वो शै है इस जहां में
जिसे नए – नए आयाम स्थापित करके जाना है
कि तू वो सवार नहीं कि ज़रा सी आंधी से डर जाए
तू तो वो शै है जिसे तूफां को भी डराना है
मस्त चाल से जो तू आगे बढ़ता जाएगा
आसमां भी तेरी कामयाबी पर शरमायेगा
चाँद सितारे देंगे तुझे दुआ वहां से
तेरे प्रयासों से एक और चाँद
धरती पर खिले यह शुभकामना है मेरी
तेरे प्रयासों से एक और चाँद
धरती पर खिले यह शुभकामना है मेरी
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