Friday 30 August 2024

चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता – व्यंग्य

 चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता – व्यंग्य

चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता
जनता को , ठगता जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं चमचा
खुद को ही , मैं भरमाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं अंध भक्त
क्यों खुद से , धोखा खाऊँ

चाह नहीं मुझे , बनकर मैं बनकर लोभी
मोक्ष द्वार , परे हो जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं पुष्प
नेता के चरणों में , फेका जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
जनता को , टोपी पहनाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
अहंकार में , लिप्त हो जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
अधर्म मार्ग पर , बढ़ जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
जनता का दुश्मन . बन जाऊँ

नहीं मुझे , बनकर मैं नेता
जनता को , ठगता जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं चमचा
खुद को ही , मैं भरमाऊँ

अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'

न जाने कहाँ फिर से, उनसे मुलाकात हो जाये

 न जाने कहाँ फिर से, उनसे मुलाकात हो जाये

न जाने कहाँ , फिर से
उनसे मुलाकात हो जाये
न कुछ कहें हम उनसे , न वो हमसे
बस एक दूसरे का , दीदार हो जाये

चंद खुशनुमा यादें ताज़ा हो जाएँ
वो आम के पेड़ की छैयां
बाहों में बाहें , एक दूसरे की
आगोश में एक दूसरे की हम – तुम

वो खतों का सिलसिला
वो छुप – छुप कर मिलना
वो तेरा मुस्कराना
चुनरी से मुँह छुपाना

काश वो यादें फिर से , ताज़ा हो जाएँ
तेरी आगोश में चंद सासें , गुजर जाएं
वो फिर से तेरा रूठना , और मेरा मनाना
काश फिर से हम , एक – दूसरे के हो जाएँ

न जाने कहाँ उनसे
फिर से उनसे मुलाकात हो जाये
न कुछ कहें हम उनसे , न वो हमसे
बस एक दूसरे का दीदार हो जाये

अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'

काली छाया का रहस्य – कहानी

 

काली छाया का रहस्य – कहानी

रामगढ़ के लोग अपना जीवन मेहनत करके बहुत ही आराम से गुजार रहे थे | किन्तु इन दिनों एक काली छाया इन लोगों के डर का कारण बनी हुई थी | रामगढ़ गाँव में प्रवेश करने से पहले एक पगडंडी पड़ती थी | जिस पर से गुजरने पर एक काली छाया वहां से गुजरने वालों को दिखाई देती थी | जिसे देखकर लोग बेहोश हो जाते थे | बाद में होश आने पर पता चलता था कि उनके पास जो भी पैसे , कीमती सामान होता था वो सब गायब हो जाता था |
यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा पर किसी को भी काली छाया का रहस्य पता नहीं चला | लोग उस रास्ते से गुजरते और काली छाया का शिकार हो जाते | काली छाया का लोगों के दिलों दिमाग पर यह असर हुआ कि उन्होंने नया रास्ता खोजने का विचार किया ताकि इस काली छाया से कहर से बचा ज सके | नया रास्ता खोजने के बाद शुरू के दिनों में काली छाया का कोई असर नहीं दिखाई दिया किन्तु दो दिन बाद फिर से वही सिलसिला शुरू हो गया | लोग उस रास्ते से गुजरते और काली छाया देखकर बेहोश हो जाते और फिर वही सामान और कीमती चीजें गायब |
अब तो बात इतनी बढ़ गयी कि लोगों का जीना दूभर हो गया | इसी बीच एक दिन उसी रस्ते से साधुओं का एक काफिला निकला और रामगढ़ आ पहुंचा | पर लोगों को यह जानकार आश्चर्य हुआ कि उस साधुओं पर काली छाया का कोई असर नहीं हुआ | वे सोचने लगे कि हो सकता है कि काली छाया पर इस साधुओं की शक्ति का असर हुआ होगा | इसलिए सभी साधू सुरक्षित रामगढ़ पहुँच गए | किन्तु इसके बाद फिर वही सिलसिला शुरू हो गया |
एक दिन शाम होने से पहले रामगढ का ही एक लड़का दौड़ा – दौड़ा गाँव की ओर आया और गाँव के सरपंच को उसने कुछ बताया | सरपंच उस लड़के की बात सुनकर अचंभित रह गया | सरपंच ने तुरंत गाँव के बहुत से लोगों को इकठ्ठा किया और दौड़ चले उस जगह से कुछ दूरी पर जहाँ काली छाया का प्रकोप दिखाई देता था | सभी ने ध्यान से देखा तो पता चला कि काली छाया वाली सड़क के दोनों ओर जो पेड़ लगे थे उन पर कुछ लड़के छिपे बैठे थे | और किसी के वहां से गुजरने का इंतजार कर रहे थे |
इसी बीच सरपंच ने अँधेरा होने पर दो लोगों को सड़क के दूसरी ओर से गाँव की ओर इसी सड़क से जाने को कहा | जैसे ही वे सड़क पर पहुंचे | पेड़ पर बैठे लड़कों में से दो लड़कों ने लेज़र बीम से काली छाया बनाई | जिसे देखकर दोनों लड़के बेहोश होने का नाटक करने लगे | उन्हें बेहोश देख पेड़ से सभी लड़के उतर आये | जैसे ही वे उस दोनों बेहोश लड़कों के पास पहुंचे गाँव के सरपंच और अन्य गाँव वासियों ने उन पर हमला कर दिया और उन्हें पकड़ लिया | पूछने पर पता चला कि उन्हें नशा करने की आदत थी जिसकी वजह से कोई उन्हें काम नहीं देता था | और नशा करने के लिए उन्हें ये रास्ता सूझा | सभी लुटेरों को पुलिस के हवाले कर दिया गया और जिस लड़के ने उन लुटेरों के बारे में सरपंच को जानकारी दी थी उसे सम्मानित किया गया |
अब रामगढ़ गाँव उस काली छाया के कहर से मुक्त हो चुका था | सारे रामगढ़ वासी ख़ुशी – ख़ुशी रहने लगे |

चिंपू गधे की समझदारी – कहानी

चिंपू गधे की समझदारी – कहानी

                                 चंपकवन के सभी जानवर एक – दूसरे के साथ बहुत ही प्रेम व्यवहार के साथ रहते थे | चंपकवन में ही चिंपू गधा अपने माता – पिता के साथ आलीशान बंगले में रहा करता था | चंपू गधे के माता – पिता को अपने धनी होने का बहुत ज्यादा ही घमंड था |

                                     चंपकवन के सभी जानवर चिंपू गधे की सादगी के कायल थे | चिंपू गधा अब बड़ा हो गया था | उसके माता – पिता को अब उसकी शादी की चिंता होने लगी थी | उन्हें इस बात की भी चिंता थी कि उनकी बराबरी का कोई भी गधा परिवार न तो चंपकवन में था न ही आसपास के किसी और वन में | चिंपू गधे की माँ की वजह से दो – तीन रिश्ते यूं ही आये और चले गए | चूँकि चिंपू गधे की माँ को बारातियों का भव्य स्वागत और दहेज़ में बहुत सारा सामान चाहिए था | चिंपू गधे को माँ की इन बातों से लगने लगा कि इस जन्म में तो उसकी शादी होने वाली नहीं |
                                    एक दिन अचानक पास के जंगल कुंजनवन से चिंपू के लिए एक रिश्ता आया | चिंपू गधे के माता – पिता चूँकि पास के ही एक रिश्तेदार के पास गए थे | सो चिंपू ने ही उनका स्वागत किया | और उनसे आवश्यक बातें कर उनको समझा देता है कि वे किसी भी हालत में रिश्ते के लिए ना नहीं करें |
चिंपू के माता – पिता से बात करने के बाद कुंजनवन से आये लड़की के माता – पिता अपनी बेटी चिंकी गधी का हाथ चिंपू गधे के हाथ में देने को तैयार हो जाते हैं | शादी धूमधाम से हो जाती है | बारातियों का स्वागत भी और दहेज़ में ढेर सारी चीजें देखकर चिंपू गधे के माता – पिता भी बहुत खुश होते हैं | चंपकवन के सभी जानवर इस शादी का हिस्सा बनकर ख़ुशी से फूले नहीं समाते | क्यूँकि ऐसी खातिरदारी चंपकवन के किसी और जानवर की शादी में नहीं हुई थी |
                                            चिंपू की पत्नी चिंकी इस बात से बेहद खुश थी कि उसका पति चिंपू गधा बहुत ही सीधा सादा है | चिंकी अपने पति चिंपू गधे से पूछती है कि आपने इस शादी के लिए मना क्यों नहीं किया | चूंकि मेरा परिवार तो बहुत गरीब है | चिंपू ने बड़ी ही सादगी के साथ बताया कि मेरे माता – पिता की हैसियत के बराबर इस जंगल और आसपास के किसी भी जंगल में कोई भी नहीं है | उनकी दहेज़ लेने की आदत के चलते इस जन्म में मेरी शादी होने से थी | सो मैंने तुम्हारे माता – पिता से बात कर शादी का पूरा खर्च अपने हाथों में ले लिया | वैसे भी मुझे दहेज़ से सख्त नफरत है | अब मेरे माता – पिता भी खुश और तुम्हारा परिवार भी | और मैं और तुम भी तो इस शादी से खुश हैं |
                                  चिंपू गधे की पत्नी चिंकी अपने पति चिंपू के गले लग जाती है | दोनों ख़ुशी – ख़ुशी रहने लगते हैं |

अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'

दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे

 दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

महल अटारी सब छूटेंगे
खाली हाथ है , जाना रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

क्या लाया था , इस जग में तू
क्या साथ ले जाएगा

भाग रहा भौतिक जग में तू
मोक्ष राह से भटक जाएगा रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

क्या है मेरा , क्या है तेरा
ये जग है , माया का फेरा

साँसों की माला कब टूटेगी
समझ नहीं आयेगा , तुझे रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

दीन दुखियों की परवाह कर तू
कुछ कर्म इंसानियत की राह कर तू

क्यूँ कर माया के पीछे दौड़े
चल आध्यात्म की राह रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

चिंतन में तुम , प्रभु को धारो
जीवन अपना धर्म राह में वारो

जीवन नैया तेरी डगमग डोले
क्यूँ करता मनमानी रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

बहके जो कोई तो संभाल लेना

 बहके जो कोई तो संभाल लेना

फिर चाहे अपना हो या हो पराया
चंद मुस्कान रोशन कर देना
फिर चाहे अपना हो या पराया

सिसकने नहीं देना किसी को भी
फिर चाहे अपना हो या पराया
भर देना उनकी जिन्दगी सितारों से
फिर चाहे अपना हो या पराया

कुछ पुष्प खिला देना उनके आँगन में
फिर चाहे अपना हो या पराया
जीत जाएँ वो भी अपनी जिन्दगी की जंग
फिर चाहे अपना हो या पराया

मुफलिसी से बचा लेना उनको
फिर चाहे अपना हो या पराया
पीड़ा से मुक्त कर देना उनको
फिर चाहे अपना हो या पराया

फिर चाहे अपना हो या पराया
फिर चाहे अपना हो या पराया

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

चाँद बनकर मुस्कराऊँ

 चाँद बनकर मुस्कराऊँ

सूर्य सा मैं ओज पाऊं
पुष्प बन खुशबू बिखेरूं
सालिला का कल – कल संगीत हो जाऊं

बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….

पक्षियों का कलरव हो जाऊं
पवन का मद्धिम वेग पाऊं
बालपन मुस्कराहटों से परिपूर्ण
यौवन को संस्कारों से सजाऊं

बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….

पेड़ों पर कोंपल बन निखरूं
चन्दन सा मैं पावन हो जाऊं
गीत बन निखरूं मैं राष्ट्रहित
अम्बर सा विशाल ह्रदय पाऊं

बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….

लड़की बन निखरूं धरा पर
प्रेम का समंदर हो जाऊं
सुसंस्कृत माँ बनकर
संस्कारों का मैं विस्तार हो जाऊं

बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

दीपों की माला में , जीवन पिरो लो

 दीपों की माला में , जीवन पिरो लो

खुशियों से खुद को, सराबोर कर लो

बिखेर दो रोशनी , आँगन मे सभी के
रंगोली के रंग , जीवन में भर लो

चांद तारे सभी ,उतर आए ज़मी पर
दीपों से संसार , रोशन कर लो

खिला दो कुछ रंग , जीवन में सभी के
दिवाली की इतना , पावन कर लो

दीपों की माला में , जीवन पिरो लो
खुशियों से खुद को, सराबोर कर लो

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

जी करता है बाबा बन जाऊं

 जी करता है बाबा बन जाऊं

बाबा बनके प्रॉपर्टी बनाऊं
अपना खुद का बिज़नेस चलाऊं
जी करता है , बाबा बन जाऊं

जी करता है , बाबा बन जाऊं
धर्म के नाम पर , लोगों को भटकाऊँ
आश्रम की आड़ में , रंगमहल बनाऊं
जी करता है , बाबा बन जाऊं

जी करता है , बाबा बन जाऊं
बाबा बनके वर्ल्ड टूर पर जाऊं
सेविकाओं की सेना सजाऊं
जी करता है , बाबा बन जाऊं

जी करता है , बाबा बन जाऊं
नेताओं को चरणों में झुकाऊं
भक्तों की प्रॉपर्टी अपने नाम पर कराऊँ
जी करता है , बाबा बन जाऊं

जी करता है , बाबा बन जाऊं
आइलैंड में रंगमहल बनाऊं
अंधभक्तों की सेना सजाऊँ
जी करता है , बाबा बन जाऊं

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

फ़ितरत को ज़माने की, ये क्या हो गया है

 फ़ितरत को ज़माने की, ये क्या हो गया है

भाई अपने भाई से, जुदा हो गया है |

रिश्तों की मर्यादा ने , सीमाएं लांघ दी हैं
इंसानियत का जज़्बा , लहुलुहान हो गया है |

आधुनिकता की अंधी दौड़ में , इंसान गुम हो गया है
सुविधाओं के बवंडर में , मानव कहीं लोप हो गया है |

जीवन अजीब सी दौड़ का , पर्याय हो गया है
धर्म पर राजनीति का , कब्ज़ा हो गया है |

राष्ट्र के प्रति समर्पण , दिखावा हो गया है
राष्ट्र के सपूतों का निरादर , आम हो गया है |

नेताओं की कुटिल चालों से घायल , आमजन हो गया है
झूठ का बोलबाला , सत्य कहीं वीराने में खो गया है |

आँखों में शर्म का , अभाव हो गया है
संस्कार स्वयं के अस्तित्व पर , रो रहा है |

फ़ितरत को ज़माने की, ये क्या हो गया है
भाई अपने भाई से, जुदा हो गया है |

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

मुझको अपनी शरण में ले लो ,हे मनमोहन हे गिरधारी

 मुझको अपनी शरण में ले लो ,हे मनमोहन हे गिरधारी

चरण कमल तेरे बलि – बाले जाऊं ,हे मनमोहन हे गिरधारी

मिथ्या अभिमान से दूर रखो तुम, हे मनमोहन हे गिरधारी
पाप – पुण्य का भेद बताओ ,हे मनमोहन हे गिरधारी

हाथ जोड़ तेरे मंदिर आऊँ, हे मनमोहन हे गिरधारी
पाऊँ तेरा दरश गिरधारी, हे मनमोहन हे गिरधारी

पहला ऋतुफल तुझको अर्पित, हे मनमोहन हे गिरधारी
पाछे सब पाऊँ बनवारी हे, मनमोहन हे गिरधारी

मनोहर छवि मुझे भाये तुम्हारी ,मुझको दरश दिखाओ गिरिधारी
मात- पिता की सेवा कर लूं ऐसे भाग्य जगाओ ,बनवारी हे मनमोहन हे गिरधारी

मोक्ष मार्ग बतलाओ हे प्रभु ,अपने चरणों में लाओ मुरारी
कोमल वाणी प्यारी मुझको जीवन तृष्णा मिटाओ ,गिरिधारी हे मनमोहन हे गिरधारी

माया मोह से मुझे बचाओ ,जीवन पार लगाओ बनवारी
चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं, हे मनमोहन हे गिरधारी

मुझको अपनी शरण में ले लो ,हे मनमोहन हे गिरधारी
चरण कमल तेरे बलि – बाले जाऊं ,हे मनमोहन हे गिरधारी ||

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

Wednesday 28 August 2024

कुछ काम करो , कुछ काम करो

 कुछ काम करो , कुछ काम करो

जग में अपना नाम करो
भाग्य भरोसे मत बैठो तुम
कुछ काम करो , कुछ काम करो

आगे बढ़ना नियति तुम्हारी
कर्म राह प्रधान करो तुम
कुछ काम करो , कुछ काम करो
जग में अपना नाम करो

संकट जीवन में जो आए
कभी ना तू उससे घबराए
जीवन को प्रणाम करो तुम
जग में अपना नाम करो तुम

निंदा में तुम यूं ना उलझो
कठोर वचन तुम यूं ना बोलो
सबका तुम सम्मान करो
सत्कर्म मन ध्यान धरो

कुछ काम करो , कुछ काम करो
जग में अपना नाम करो
भाग्य भरोसे मत बैठो तुम
कुछ काम करो , कुछ काम करो

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

सत्य से सबका परिचय कराएं , आओ कुछ ऐसा करें

 सत्य से सबका परिचय कराएं , आओ कुछ ऐसा करें

सिंहासन डोल जाएँ , आओ कुछ ऐसा करें

वीरों के लहू का कतरा – कतरा देश काम आए
दिलों में देश प्रेम का ज़ज्बा जगाएं , आओ कुछ ऐसा करें

प्रकृति को सुनामी से बचाएं , आओ कुछ ऐसा करें
इस धरा को भूकंप से बचाएं , आओ कुछ ऐसा करें

आओ निर्माण करें ऊपजाऊ सामाजिक परिदृश्य का
आग्नेयास्त्र से विहीएँ धरा का निर्माण हो , आओ कुछ ऐसा करें

आप्राकृतिक कृत्यों से इस धरा को बचाएं , आओ कुछ ऐसा करें
आस्तिक चरित्रों का समंदर हो जाए ये समाज , आओ कुछ ऐसा करें

मनुष्य इस धरा की अमूल्य निधि हो जाए , आओ कुछ ऐसा करें
आदरणीय हो जाएँ सभी चरित्र , आओ कुछ ऐसा करें

अनुकरणीय विचारों से सभी हों आमोदित , आओ कुछ ऐसा करें
अभिनन्दन हो सभी चरित्रों का , आओ कुछ ऐसा करें

अजातशत्रु हो जाएँ सभी इस धरा पर, आओ कुछ ऐसा करें
मोक्ष मार्ग प्रस्थित हों सभी के , आओ कुछ ऐसा करें ||

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया

 खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया

हम भी हैं नाखुश , अपनेपन का दौर गया

नाइंसाफी का दौर नया , नाउम्मीदी का शोर नया
नाकाबिल चरित्रों का दौर नया , नफरतों का दौर नया

पी रखी है सभी ने दो घूँट , नाफ़रमानी की
नादानी कर रहे सब , कामचोरों का दौर नया

वसंत आने के पहले पतझड़ का मौसम आया
नामुमकिन को मुमकिन कहने का दौर नया

पसंद है जिन्हें दूसरों पर बेइंसाफी का दौर
इन इंसानियत के तलबगारों का दौर नया

नियाज करते हैं उस खुदा से वो “अनिल”
उस खुदा के चाहने वालों का दौर नया

निस्बत थी उस खुदा से उसके चाहनेवालों की
अब क्या कहें इन दौलत के ठेकेदारों का दौर नया

फुर्सत नहीं है उन्हें दो वक़्त इबादत कर लें
नाशुक्रों का आया है कैसा ये दौर नया

खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया
हम भी हैं नाखुश , अपनेपन का दौर गया

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं

 खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं

खुशनुमा – खुशनुमा सा लग रहा है आसमां

चारों तरफ फूल खिलखिलाने लगे हैं
पंक्षी भी मधुर स्वर में गुनगुनाने लगे हैं

खिली – खिली सी लग रही है फिज़ां
आसमां भी मंद – मंद पवन बहाने लगे हैं

पूछते हैं हाल मेरा वो क्यों कर
क्या वो मुझ पर तरस खाने लगे हैं

किनारा कर जो खुश हुए मुझसे
वो आज मुझ पर प्यार क्यों लुटाने लगे हैं

गली में उनकी हमने जाना छोड़ दिया
वो क्यों मेरी गली के चक्कर लगाने लगे हैं

दौलत से कभी हमने मुहब्बत थी ही नहीं
वो आज हम पर अपनी दौलत क्यों लुटाने लगे

जीने मरने की कसमें खाया करते थे वो
आज वो दूसरों का घर क्यों बसाने लगे

खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं
खुशनुमा – खुशनुमा सा लग रहा है आसमां

चारों तरफ फूल खिलखिलाने लगे हैं
पंक्षी भी मधुर स्वर में गुनगुनाने लगे हैं ||

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

खिलेंगे फूल राहों में

 खिलेंगे फूल राहों में

ज़रा दो कदम तो चल
बिछेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

कौन कहता है सुबह होगी नहीं
हौसलों को तू अपने
आसमां की उड़ान पर लेकर चल

रुकना नहीं है तुझको बीच राह में
मंजिल को अपने जिगर में बसा के चल

खुशबू से महकेगा आँचल
किसी को अपना बना के चल

किस्से जहां में यूं ही एहसास नहीं देते
किसी की राह के कांटे चुरा के चल

बेफिक्री में तू यूं ना जी
किसी के गम अपने जिगर में बसा के चल

तेरा नसीब बुलंदी पाए
दो फूल इंसानियत के खिला के चल

मुझे लोग खुदा का नूर कहें
दो वक़्त की नमाज़ अता कर के चल

खिलेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

बिछेंगे फूल राहों में
ज़रा दो कदम तो चल

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

कागज़ की नाव सी ,न हो जिन्दगी तेरी

 कागज़ की नाव सी ,न हो जिन्दगी तेरी

मांझी की पतवार सी , हो जिन्दगी तेरी

बंज़र ज़मीं सी ,न हो जिन्दगी तेरी
फूलों की खुशबू की मानिंद ,हो जिन्दगी तेरी

ज़मीं पर यूं ही ,न रहें कदम तेरे
आसमां को छूती ,जिन्दगी हो तेरी

विचारों पर तेरे पाश्चात्य का ,प्रभाव न पड़े
संस्कृति , संस्कारों से, पल्लवित हो जिन्दगी तेरी

किस्सा न हो जाएँ ,सभी प्रयास तेरे
आदर्श मार्ग निर्मित ,हो जिन्दगी तेरी

यूं ही न बीत जाए, जिन्दगी तेरी
दूर सीमा पर देश की ढाल, हो जिन्दगी तेरी

यूं ही सिसक- सिसक कर ,न बीते जिन्दगी तेरी
औरों के ग़मों को ढोती ,हो जिन्दगी तेरी

कागज़ की नाव सी ,न हो जिन्दगी तेरी
मांझी की पतवार सी ,न हो जिन्दगी तेरी

कागज़ की नाव सी ,न हो जिन्दगी तेरी
मांझी की पतवार सी , हो जिन्दगी तेरी

बंज़र ज़मीं सी ,न हो जिन्दगी तेरी
फूलों की खुशबू की मानिंद ,हो जिन्दगी तेरी

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी

 बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी

धर्म राह पर ले चल मुझको , हे मुरलीधर हे बनवारी

तुम करुणा के सागर मेरे , बस जाओ मन में त्रिपुरारी
चरण कमल तेरे सब अर्पण , जीवन से तारो बनवारी

निष्ठुर होकर भुला न देना , चरण कमल जाऊं बलिहारी
चरण कमल में ले लो हमको , पुण्य करो जीवन गिरधारी

अभिलाषा बस इतनी मेरी , मुझको दरश दे दो बनवारी
मुश्किल में है नैया मेरी , पार लगा दो हे गिरधारी

हे पावन परमेश्वर मेरे , कर दो मुझको तुम संसारी
रत्नाकर सा ह्रदय हो मेरा , कुछ ऐसा कर दो बनवारी

मैं तेरे चरणों में आकर , हो जाऊं बलिहारी
उपकार तेरा मुझ पर हो इतना , हे मुरलीधर हे गिरधारी

तुझको पाकर जीवन मेरा , खिल जाए हो बनवारी
मुझको जीवन पार लगा दो , हे मुरलीधर हे बनवारी

बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी
धर्म राह पर ले चल मुझको , हे मुरलीधर हे बनवारी

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

फूल अब खिलते नहीं , खुशबू का हमको पता नहीं

 फूल अब खिलते नहीं , खुशबू का हमको पता नहीं

भागते फिर रहे हैं हम , मंजिल का हमको पता नहीं

ज्ञान के पीछे भागते हम , पुस्तकें हमको भाती नहीं
मोक्ष की बातें करते हम , संस्कारों से हमारा नाता नहीं

गिर रहे हैं बार – बार हम , संभलना हमको आता नहीं
देख रहे सा सभी चीरहरण , इंसानियत से हमारा नाता नहीं

पाने की इच्छा प्रबल हुई , हमको देना आता नहीं
पालना झुला रहे हैं सब , मातृत्व से हमारा नाता नहीं

काम प्रबल हुई भावनाएं , प्रभु से हमारा नाता नहीं
आधुनिकता की गुलामी में डूबे , संस्कारों से हमारा नाता नहीं

चांदनी की चमक में डूबे , अन्धकार हमको भाता नहीं
विलासिता की चाहत में डूबे , संस्कारों से हमारा नाता नहीं

मधुशाला का रुख करें हम , देवालय से हमारा नाता नहीं
जीवन की उलझन में उलझे , मोक्ष से हमारा नाता नहीं

फूल अब खिलते नहीं , खुशबू का हमको पता नहीं
भागते फिर रहे हैं हम , मंजिल का हमको पता नहीं

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

कोशिश करना आगे बढ़ना , तेरा यही प्रयास हो

 कोशिश करना आगे बढ़ना , तेरा यही प्रयास हो

मुश्किलों से तू न डरना , हौसलों की आस हो

रहना सजग तुम हमेशा , खामोशी का न साथ हो
कीर्ति पताका फहरे तुम्हारी , सिर पर गगन विशाल हो

डरना नहीं तुम आँधियों से , साहस तुम्हारे साथ हो
विषाद से तुम दूर रहना , धैर्य तेरे साथ हो

आदर्शों की गंगा बहाओ , संस्कार तेरे साथ हो
हे मानव तुम हो प्रतापी , उस परमेश्वर की संतान हो

रखना बचा खुद को जहां से , सत्मार्ग तेरी राह हो
विरले विचारों से तू दमके , धरोहर तेरी अपार हो

सरिता सी पावन कीर्ति तेरी , महिमा तेरी अपार हो
चमके सितारा बुलंदियों पर , तुझ पर समय की न मार हो

हे मानव पुण्यमूर्ति तुम , ह्रदय तेरा विशाल हो
चर्चा तेरी दोनों जहां में , उस प्रभु का तुझ पर हाथ हो

कोशिश करना आगे बढ़ना , तेरा यही प्रयास हो
मुश्किलों से तू न डरना , हौसलों की आस हो

कोशिश करना आगे बढ़ना , तेरा यही प्रयास हो
मुश्किलों से तू न डरना , हौसलों की आस हो

रहना सजग तुम हमेशा , खामोशी का न साथ हो
कीर्ति पताका फहरे तुम्हारी , सिर पर गगन विशाल हो

समय पर जागो , समय पर सोओ

 समय पर जागो , समय पर सोओ

समय पर अपना काम करो

समय पर पढ़ना , समय पर लिखना
रोशन अपना नाम करो

समय पर पूजा , काम न दूजा
समय पर , प्रभु का ध्यान करो

समय है मानव जीवन की पूँजी
समय पर तुम विश्राम करो

समय पर बोलो , समय पर खेलो
मानव तन सम्मान करो

जीवन को चरितार्थ करो तुम
कर्म को समय प्रधान करो

समय जो छूटा , सब कुछ रूठा
समय को तुम प्रणाम करो

समय का वंदन , तेरा अभिनन्दन
समय को मूल्यवान करो

समय न देखे सुबह – सवेरा
रहे न तुझसे कुछ भी अधूरा

समय पर तुम कुछ न छोड़ो
समय को समय के पलड़े में तोलो

समय जो हो जाए तेरा
समझो हो गया पूर्ण सवेरा

समय को तुम प्रणाम करो
समय को अपने मन ध्यान धरो

समय पर जागो , समय पर सोओ
समय पर अपना काम करो

समय पर पढ़ना , समय पर लिखना
रोशन अपना नाम करो

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

विनाश नहीं करती, जिन्दगी की सकारात्मकता

 विनाश नहीं करती,  जिन्दगी की सकारात्मकता

भूल जाओ जिन्दगी के नकारात्मक पलों की भयावहता

चित्त को जीवन के सचेत तुम रखो
न होने दो विचारों को नकारात्मकता से अचेत

आत्मविश्वास की कमी पैदा करती जिन्दगी में भयावहता
अति आत्मविश्वास का होना जिन्दगी को पथभ्रष्ट करता

प्रयास करो व्याप्त हो जिन्दगी में आस्तिकता
गिरा देती है आदर्शों के स्तंभ , नास्तिकता

सृजनात्मक मन से आलोकित करो जिन्दगी के पल
करो इश्वर की तलाश , यही है जीवन दर्शन

जिन्दगी की और उम्मीद भरी निगाहों से देखो
जिन्दगी को बचपन की तरह संवारकर देखो

आकाश से ऊँची हौसलों की उड़ान हो तेरी
खुद पर स्वयं पर यकीन करके देखो

तिनके – तिनके से बनता है जिन्दगी का आसमान
खुद लिखो , खुद की जिन्दगी के नाम पैगाम

विनाश नहीं करती जिन्दगी की सकारात्मकता
भूल जाओ जिन्दगी के नकारात्मक पलों की भयावहता

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझको

 युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझको

सो रही अन्तरात्मा की आवाज जगा दो मुझको

बिखर न जाएँ जिन्दगी में ख़ुशी के पल
आशा की नई किरणों से सजा दो मुझको

आंसुओं भरी रातों में , बिखरें न जिन्दगी के हंसी पल
एक मुटठी चांदनी हो , मेरी जिन्दगी का सबब

न जाने अश्क से आँखों में क्यों हैं आये हुए
इन आंसुओं के समंदर से बाहर निकाल लो मुझको

मेरे सपनों की शाम , न हो जाए कहीं
हो सके तो प्यार की सरिता में बहा दो मुझको

तिनके – तिनके से सजाया है आशियाना मैंने
हो सके तो इस आशियाने में सजा दो मुझको

एक ख़त लिखा था मैंने तुझको ए मेरे सनम
कुछ फूल इन खतों के जवाब में भेज दो मुझको

आकाश से भी ऊँची थी मेरे सपनों की उड़ान
दुआ करो सपनों को मेरे , और आसमान नसीब हो मुझको

युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझको
सो रही अन्तरात्मा की आवाज़ जगा दो मुझको

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”