Monday, 4 February 2019

तुम हमेशा ही मेरे हुए


तुम हमेशा ही मेरे हुए

तुम हमेशा ही मेरे हुए
इस विचार को अपने ही भीतर
संजोये रहा हूँ मैं

जीवन समर में
प्रेम आलिंगन बन उतरी
उस प्रेयसी को संबोधित
करते हुए
उसके व्यक्तित्व का
अवलोकन कर रहा हूँ

उस एक कमरे में
जो बारिश में
जगह – जगह से
टपकता था
उसमे गुजारे अन्तरंग पल
आज भी तुम्हें मेरी होने का
एहसास कराते हैं

घर में नन्ही परी का आगमन
झूम उठा था मेरा तन – मन
तब भी लगा था तुम मेरी हो

यह सिलसिला
 हमारे एक होने का
अनवरत चलता ही रहा

फिर एक और नन्ही परी
फिर एक प्रिंस का आगमन
इसी बीच उस “घोंसले रुपी”
आशियाने में बिठाये पल 

एक साइकिल पर चार सवार
तब भी तुम मेरी ही थीं

बच्चों के प्रति लगाव
उनके खिलोनों का रख रखाव
उनके पेन , पेंसिल , किताबें
सब कुछ संयोजित सा था

मेरा टूर पर जाना
तुम्हें पसंद न था
संभलकर ट्रेन पर चढ़ना
देखकर सड़क पार करना
समय पर खाना खाना
समय पर सोना आदि  - आदि
काफी था ये एहसास दिलाने के लिए
कि तुम मेरी सच्ची प्रेयसी हो

वो आशियाँ भी तो
हमारी जद्दोजहद और आपसी
समझ का ही प्रतीक था
जिसे हमने अपनी मुहब्बत
की निशानी बना दिया

मुझे आज भी याद है
मेरी पहली कविता “ सत्य “
इस कविता पर तुम्हारे विचारों ने
अनवरत लिखते रहने के लिए
मुझे ऊर्जा और प्रेरणा दी थी  
आज लेखन मेरा कर्म बन
निखर रहा है
उस वक़्त तुमने
मेरी कलम का साथ दिया
आज भी याद है मुझे

धर्म और कर्म के प्रति आस्था की
पुण्यमूर्ति बन
मेरे जीवन में उतरीं
आलोकित कर दिया
तुमने मेरा रोम – रोम

आज जिस मुकाम पर हूँ
 उसका श्रेय तुम्हें न दूं तो और किसे
तुम्हारा सत्कर्म की ओर
प्रेरित करने का ज़ज्बा
हमेशा हे मुझे सराहनीय लगा

तुम्हारा स्पर्श आज भी मुझे
रोमांचित करता है
तुम्हारा आलिंगन मुझे बार  - बार
जीवंतता प्रदान करता है
और हो भी क्यूं न
तुम मेरी प्रेयसी जो हो

होम मिनिस्टर , फाइनेंस मिनिस्टर
भी तो तुम्हीं हो
कहूं तो गृहलक्ष्मी हो तुम
मेरे जीवन का संगीत हो तुम
मेरे जीवन की पूर्णता हो तुम
मेरा घर मेरा संसार हो तुम
मेरे जीवन का विस्तार हो तुम
तुम हमेशा ही मेरे हुए , मेरे हुए , मेरे हुए .........


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