हर शख्स है बेचैन
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
रूह रही तड़प -
तड़प , साँसें हैं सिसक रही
मुसीबतों का पहाड़ है, रिश्तों का अभाव है
हर शख्स है
बेचैन , कहाँ किसे है चैन
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
आदमियत खो गयी , इम्तिहान की है हर घड़ी
आशियाने हैं झुलस रहे, इंसानियत है रो रही
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
प्रतिशोध की एक आगा है, रिश्ते हुए दाग - दाग हैं
कोई इधर है भागता , कोई उधर है भागता
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
धर्म की आड़ में अधर्म, सेवा में मेवा ढूंढते
भटक रहा हर एक चरित्र, सांस हर एक डरी - डरी
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
जिन्दगी हुई पिंजरे में कैद, हर एक कदम बहक रहा
काबिल है यूं भटक रहा, चापलूसों का बोलबाल है
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
गुमराह हो रही जवानियाँ, लुप्त हो रहे संस्कार हैं
गुलिस्तां में अब गुल है कहाँ , उपवन हुए अब बेज़ार हैं
हर शख्स है बेचैन , कहाँ किसे है चैन
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