उम्मीद न थी हमको
उम्मीद न थी हमको, कोई हमसे भी करेगा धोखा
क्यों कर कोई कर गया नागवार खता , मुझे क्या मालूम
दिल ही दिल में समझते थे उन्हें हम मुहब्बत का खुदा
क्यों कर दिल को जख्म दे गया मुझे क्या मालूम
मुझे अपने दोस्त पर था खुद से भी ज्यादा एतबार
सीने में खंजर क्यूं घोंप गया मेरा दोस्त, मुझे क्या
मालूम
सहेज - सहेजकर
रखने की कोशिश की थी मैंने हर एक रिश्ते को
हर एक रिश्ते का कोई क्यूं खून कर गया, मुझे क्या मालूम
सजाया था मैंने भी एक आशियाँ अपनी मुहब्बत का
मेरे इस आशियाँ पर क्यों कोई नज़र लगा गया ,मुझे क्या
मालूम
चंद गीत सजाये थे मैंने उसकी मुहब्बत में पागल होकर
क्यों कर वो गीत चुरा ले गया कोई ,मुझे क्या मालूम
मेरी भी आरज़ू थी आसमां पर पंख लगाकर उड़ने की
मेरी आरज़ू के पंख कोई क्यूं कर चुरा ले गया ,मुझे क्या
मालूम
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