दिल्लगी उनसे करें , खुदा
से क्यों न करें
दिल्लगी उनसे करें , खुदा
से क्यों न करें
खुदा का हो जो करम, वो भी
दिल दे ही बैठेंगे
लोग कहते हैं रिश्तों में
नहीं अब वो गर्मी
हम ये मानते हैं रिश्ते अपने
या पराये हैं , तो दुनिया है
शराबखाने में ही जाने से
क्या गम हो जाते हैं काफूर
यदि ऐसा होता तो दुनिया में
मंदिर, मस्जिद नहीं होते
उनकी बेअदबी का सिला ,
बेअदबी हो ये जरूरी नहीं
कोशिश ये हो उनकी बेअदबी
उनका गुरूर न हो
अपने गीतों को गजल सा तराश
सकूं , ये सूरत नज़र नहीं आती
अपनी कलम को खुदा की इबादत
कर सकूं ,ये सूरत नज़र नहीं आती
खुद को ग़मगीन किये बैठे हैं
तेरी आरज़ू में ये ख़याल आया
तुझको करीब पाया तेरी
तस्वीर देखकर
परिंदों को आसमां की ऊंचाई
तक ,उड़ता देखकर
काश मेरे भी पंख होते , मैं
ये सोचने लगा
उनकी खुशनसीबी पर मुझे
कोफ़्त न हुई
अपनी बदनसीबी से मुझे था
शिकवा
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